SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दुवारस्सकवाडे दंडरयणेणं महया २ सद्देणं तिक्खुत्तो आउद्देइ,तए णं तिमिस्सगुहाए दाहिणिलस्स दुवारस्सकवाडा सुसेणसेणावइणा दंडरयणेणं महया २ सद्देणं तिक्खुत्तो आउट्टिया समाणा महया २ सद्देणं कोंचारवं करेमाणा सरसरस्ससगाई २ ठाणाई पच्चोसक्कित्था, तए णं से सुसेणे सेणावई तिमिस्सगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडे विहाडेइत्ता जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइत्ता जाव भरहं रायं करयलपरिग्गहिअंजएणं विजएणं वद्धावेइ त्ता एवं व्यासी विहाडिआ ण देवाणुपिआ! तिमिस्सगुहाए दाहिणिलस्स दुवारस्स कवाडा एअण्ण देवाणुप्पिआणं पिअंणिवेएमो पिअंमे भव, तए णं से भरहे राया सुसेणस्स सेणावइस्स अंतिए एअभटुं सोच्चा निसम्म हट्ठतुद्धचित्तमाणदिए जाव हिआए सुसेणं सेणावई सक्कारेइ सम्माणेइ ना कोडंवियपुरिसे सद्दावेइ त्ता एवं व्यासी खिप्यामेव भो देवाणुपिआ! आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिप्पेह हयगयरहपवर तहेव जाव अंजणगिरिकूडसण्णिभं गयवरं णरवई दुरूढे॥५३॥ नए णं से भरहे राया मणिरयणं परमसह तोतं चउरंगुलप्पमाणमित्तं च अणग्धं तंसिअं छलंसं अणोवमजुइं दिव्वं मणिरयणपतिसमें वेरूलिअंसव्वभूअकंतं जेण व मुद्धागएणं दुक्खं ॥ किंचि जाति हवइ अरोगे सव्वकालं तेरिच्छिअदेवमाणसक्या य उवसग सव्वे|| ण करेंति तस्स दुक्खं संगामेऽवि असत्थवन्झो होइ गरो मणिवरं धरेतो ठिअजोव्वणकेसअवढिअणहो हवइ य सव्वभयविप्पमुक्को, तं मणिरयणं गहाय से णरवई हस्थिरयणस्स दाहिणिल्लाए कुंभीए णिक्खिवइ, तए णं से भरहाहिवे गरिदे हारोत्थयसुकयरइअवच्छे जाव अमरवइसण्णिभाए इद्धीए पहिअकित्ती मणिरयणउज्जोए चक्करयणदेसिअमागे अणेगरायसहस्साणुआयमग्गे महया उक्लिटतभी अंबडीप प्रजाप्ति सूत्र पू. सागरी ५. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021020
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages225
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy