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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | (प्र० पुप्फारोहणं ) लोमहत्थ्यं परामुसइ ता चक्करयणं पमज्जइ ता दिव्वाए उदगधाराए अब्भुक्खेइ ना सरसेणं गोसीसवर चंदणेणं | अणुलिंपइ त्ता अग्गेहिं वरेहिं गंधेहिं मल्लेहि अ अच्चिइ पुप्फारूहणं मल्लगंधवण्णचुण्णवत्थारूहणं आभरणारूहणं करेइ त्ता अच्छेहिं सहेहिं सेएहिं रययामएहिं अच्छरसातंडुलेहिं चक्करयणस्स पुरओ अट्ठट्ठमंगलए आलिहइ, तं० - सोत्थियसिरिवच्छणंदिआवत्तवद्धमाणगभद्दासणमच्छकलसदप्पण, अट्ठट्ठमंगलए आलिहित्ता करेइ उवयारंति किं ते?, पाडलमल्लिअचंपगअसोगपुण्णागचूअमंजरिणवमालि अबकुलतिलगकणवीर कुंदकोज्जयकोरंटयपत्तदमणयवरसुरहि सुगंधगंधिअस्स कयग्गाह गहि अकर यलपब्भट्ठविप्पमुक्कस्स दसद्धवण्णस्स कुसुमणिगरस्स तत्थ चित्तं जाणुस्सेहप्पमाणमित्तं ओहनिगरं करेता चंदष्पभवइरवेरूलिअविमलदंडं कंचणमणिरयणभत्तिचित्तं कालागुरूपवर कुंदुरुक्क तुरूक्क धूवमघमघंतगंधुत्तमाणुविद्धं च धूमवट्टि विणिम्मुअंतं वेरूलिअमयं कडुच्छुअं पग्गहेत्तु पयते धूवं दहइ त्ता सत्तट्ट पयाई पच्चोसक्कड़ त्ता वामं जाणुं अंचेइ जाव पणामं करेइ त्ता आउहघरसालाओ पडिणिक्खमइ ता जेणेव बाहिरिआ उवद्वाणसाला जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ त्ता सीहासणवरगए पुरत्याभिमुहे सण्णसीअइ ता अट्ठारस सेणिपसेणीओ सद्दावेइ ता एवं व्यासी खिप्पामेव भो देवाणुम्पिआ ! उस्सुंकं उक्कर उक्किट्ठे अदिजं अमिज्जं अभडप्पवेसं अदंडकोदंडिमं अधरिमं गणिआवरणाडइज्जकलिअं अणेगतालायराणुचरिअं अणुद्धअमुइंगं अमिलायमल्लदामं पमुइ अपक्कीलि असपुर जण जाणवयं विजयवेजयंतचक्करयणस्स अट्ठाहियं महामहिमं करेह ना ममे अमाणत्तिअं खिप्पामेव पच्चष्पिणह, तए णं ताओ अट्ठारस सेणिप्पसेणीओ ॥ श्री जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्रं ॥ ४६ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021020
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages225
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size15 MB
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