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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुहोवभोगे आवि भविस्सइ॥३९॥ तए णं ते मणूसा भरहं वासं परुढसक्ख० ओसहियं उवचि० समुइयं सुहोवभागजायं २ चावि|| पासिहिति त्ता बिलेहितो णिद्धाइस्संति हतुहा अण्णमण्णं सहाविस्संतिना एवं वदिस्संति जातेणं देवाणुप्पिा! भरहे वासे परूढरुक्ख० जावसुहोवभोगे,तंजेणं देवाणुप्पिआ! अम्हे केई अजप्पभिइ असुभंकुणि आहारं आहारिस्सइसेणं अणेगाहिं छायाहिं वजणिज्जे( वजे पा०) तिकट्ट संठिई ठवेस्संति त्ता भरहे वासे सुहंसुहेणं अभिरममाणा २ विहरिस्संति ॥ ४०॥ तीसे णं भंते! समाए भरहस्स वासस्स/ केरिसए आयारभावपडोआरे भविस्सइ?, गो०! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे भविस्सइ जाव कित्तिमेहिं चेव अकित्तिमेहिं चेव, तीसेणं भंते! समाए मणुआणं केरिसए आयारभावपडोआरे भविस्सई?, गो०! तीसेणं० मणुआणं छबिहे संघयणे छविहे संठाणे बहूईओरयणीओ उड्डेउच्चत्तेणं जह० अंतोमुहत्तं उक्को० साइरेगं वाससयं आउअंपालेहिंति त्ता अपेगइआ णिस्यगामी जाव अप्पेगइआ देवागामी, सिझंति०, तीसेणं समाए एकवीसाए वाससहस्सेहिं काले वीइक्वंते अणंतेहिं वण्णपज्जवेहिं जाव परिवड्डेमाणे २ एत्थणं दूसमसुसमाणाम समाकाले पडिवज्जिस्सइ समणाउसो!, तीसे णं भंते! समाए भरहस्स वासस्स के रिसए आयारभावपडोआरे भविस्सइ?०, गो०! बहुसमरमणिजे जाव अकित्तिमेहिं चेव, तीसे णं भंते! मणुआणं के रिसए आयारभावपडोआरे भविस्सइ?, गो०! तेसिं णं मणुआणं छव्विहे संघयणे छव्विहे संठाणे बहूई धणूई उद्धंउच्चत्तेणं जह० अंतोमुहत्तं उक्को० पुव्वकोडीआउअं पालिहिंति ता अप्पेगइआ णिस्यगामी जाव अंतं रेहिंति, तीसे णं समाए तओ वंसा समुप्पजिस्संति, तं० तित्थगरवंसे चक्कवट्टिवंसे दसारवंसे, तीसे णं समाए ॥श्री जंबूद्वीप प्रजप्ति सूत्र | पू. सागरजी म. संशोधित || For Private And Personal Use Only
SR No.021020
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages225
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size15 MB
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