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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org भवंति तं० - अंतो अंतेउरियाओ गयपइआओ मयपड़आओ बालविहवाओ छड्डियतल्लिताओ माइरक्खिआओ पिअरक्खि आओ भायरक्खि आओ कुलघर र क्खिआओ ( मित्तनाइनियसंबंधिरक्खियाओ पा० ) ससुरकुलर क्खिआओ परूढणहकेसकक्खरोमाओ ववगयपुष्पगंधमल्लालंकाराओ अण्हाणगसे अजल्ल मलपंकपरिताविआओ ववगयखीर दहिणवणी असप्पितेल्ल गुललोणमह मज्जमंसपरिचत्तकयाहारओ अपिच्छाओ अप्पारंभाओ अप्पपरिग्गहाओ अप्पेणं आरंभेणं अप्पेणं समारंभेणं अप्पेणं आरंभसमारंभेणं वित्तिं कप्पेमाणीओ अकामबंभचेरवासेणं तमेव पइसेज्जं णाइक्कमइ ताओ णं इत्थिआओ एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणीओ बहूई वासाइं सेसं तं चेव जाव चउसट्ठि वाससह स्साई ठिई पं०८, से जे इमे गामागरणयरणिगमरायहाणिखेडकब्बडमडंबदोणमुहपट्टणासमसंबाहसन्निवेसेसु मणुआ भवंति तं० - दगबिइया दगतइया दगसत्तमा दगएक्कारसमा गोअमा गोव्वइआ गिहिधम्मा धम्मचिंतका अविरुद्धविरुद्धवुड्ढसावकम्पभिअओ तेसिं मणुआणं णो कप्पइ इमाओ नव रसविगईओ आहारितए तं० खीरं दहिं णवणीयं सपिं तेल्लं फाणियं महं मज्जं मंसं, गण्णत्थ एक्काए सरसवविगइए, ते णं मणुआ अपिच्छा तं चैव सव्वं णवरं चउरासीई वाससहस्साइं ठिई पं० ९, से जे इमे गंगाकूलगा वाणपत्था तावसा भवंति, तं० - होत्तिया पोत्तिया कोत्तिया जण्णई सड्ढई थालई हुंपउट्ठा दंतुक्खलिया उम्मज्जका सम्मज्जका निमज्जका संपक्खाला दक्खिणकूलका उत्तरकूलका संखधमका कूलधमका मिगलुद्धका हत्थितावसा उदंडका दिसापोक्खिणो वाकवासिणो अंबुवासिणो बिलवासिणो जलवासिणो (प्र० चेलवासिणो) वेलवासिणो रुक्खमूलिआ अंबुभक्खिणो । औपपातिकमुपांगं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित ४५ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only
SR No.021014
Book TitleAgam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages81
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size10 MB
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