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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir રૂટ अनुयोगद्वारसूत्रे " शीपा - स्त्री, 'इपामा षोडशवार्षिकी' इत्यभिधानात् शब्दोद्दाम - शब्द उद्दामा= प्रचुरो यत्र तत् किङ्किणी स्वनमुखरम् 'उद्दाम' शब्दस्य परनिपात आर्षत्वात्, अतएव यूनां = वरुणानां हृदयोन्मादकरम् पबलस्मरप्रकटीकरणात् हृदयोन्मत्तता विधा यकं स्वकीयं मेखलादाम-कटिसूत्रं मधुरविलासमूललितम् - मधुरैः = कामिजनहृदया ह्रादकतया माधुर्यमुपगतैः विलासैः सकामचेष्टाविशेषैः सुललितम् = अतिशयमनोहारि यथास्यात्तथा दर्शयति । शृङ्गारप्रधानचेष्टाप्रतिपादनादयं शृङ्गारो रसः, का, गति का, दृष्टि का, हास्य का, बोली का अनुकरण करती है, वह 'लीला' है । क्रीडा करना इसका नाम रमण है । इस श्रृङ्गार रस के मंडन, विलास, विन्चोक, हास्य, लीला और रमण ये चिह्न हैं । अब सूत्रकार (सिंगारो रसो जहा) यह शृङ्गार रस जिस प्रकार से जाना जाता है, उस प्रकार को इस गाथा द्वारा प्रकट करते हैं - (सामी) "इयामा षोडशवार्षिकी। इस कथनानुसार कोई षोडशवर्षदेशीयासोलह वर्ष की अवस्था वाली तरुण वयस्का - स्त्री (सद्दुद्दामं ) क्षुद्रघंटिकाओं के शब्द से मुखरित अतएव ( जुवाणाणं) युवा पुरुषों के (हियउम्मादणकरं) हृदय को प्रबलस्मरकी पीड़ा उत्पन्न करने से उन्मत्त करने वाले ऐसे ( मेहलादामं ) अपने कटिसूत्र को (महुरविलाससुललियं) कामिजनों के हृदय को आहादक होने के कारण मधुर लगने बाले विलासों - सकाम चेष्ठा विशेषों से अतिशय मनोहारो जैसे वह होता है उस प्रकार से (दापती) दिखलाते है इस श्रृंगाररस में शृंगारप्रधान चेष्टाओं का प्रतिपादन होता है इसलिये इसे 'श्रृंगाररस' ક્રીડા કરવી તે રમણુ કહેવાય છે મ`ડન, વિલાસ, વિખ્ખાક, હાસ્ય, લીલા તેમજ રમણુ આ સવે શૃંગાર રસના ચિહ્નો છે. वे सूत्रार (सिंगारो रसो जहा) शृंगाररस नेनाथी भाशाय हे तेर्नु गाथा वडे उथन उरे छे. (सामा ) " श्यामा षोडशवार्षिकी " આ થન मुख्य है। सोण वर्षांनी अवस्थावाजी तरुथुत्रयस्था- स्त्री (सकुँद्दामं) क्षुद्रध टिभोथी भुमरित तेथी ( जुवाणाणं) युवाना (हियउम्मादणकरं) याने अम सतम स्भर थी. थी युक्त रीने उन्मत्त १२नार ( मेहला दाम ) पोताना टिसूत्र (महुरविलाससुललियं) अभुना हृहयने माहूसा डोबा महत भधुर લાગે તેવા વિલાસેા–સકામ ચેષ્ટા વિશેષાથી અતિશય મનેહારી લાગે તેમ (दापती) तेने मतावे छे. आ शृंगार रसभां शृगार प्रधान श्रेष्टाशीतुं મતિપાદન થાય છે એથી આને શૃંગાર રસ કહેવામાં આવે છે. (धी धीमं For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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