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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ४ ॥ ॥ ७ ॥ ॥ ८ ॥ सो इह चेव भवम्मी जणाण धिक्कारभायणं होइ । परलोए उ दुहत्तो नाणाजोणीसु संचरइ धम्माउ भट्ठ सिरिओववेयं जण्णग्गिविज्झाय-मिवप्पतेयं ।। हीलंति णं दुन्विहियं कुसीला दाढोद्धियं घोरविसं व नागं ॥५॥ इहेव धम्मो अयसो अ कित्ती दुण्णामधिज्झं च पिहुज्जणम्मि । चुअस्स धम्माउ अहम्मसेविणो संभिण्णचित्तस्स उ हिट्ठओ गई। ६ जहवा सा भोगवई जहत्थनामोवभुत्तसालिकणा । पेसणविसेसकारित्तणेण पत्ता दुहं चेव तह जो महव्वयाई उवभुंजइ जीविय त्ति पालितो । आहाराइसु सत्तो चत्तो सिवसाहणिच्छाए सो इत्थ जहिच्छाए पावइ आहारमाइ लिंगि त्ति । विउसाण नाइपुज्जो परलोगम्मी दुही चेव जहवा रक्खियवहुया रक्खियसालीकणा जहत्थक्खा । परिजणमण्णा जाया भोगसुहाइं च संपत्ता ।। १० ।। तह जो जीवो सम्म पडिवज्जित्ता महव्वए पंच। पालेइ निरझ्यारे पमायलेसं पि वज्जंतो ॥ ११ ॥ सो अप्पहिइक्करुई इहलोयम्मि वि विऊहिं पणयपओ। एगंतसुही जायइ परम्मि मोक्खं पि पावेइ ॥ १२ ॥ जह रोहिणी उ सुण्हा रोवियसाली जहत्थमभिहाणा । वड्डित्ता सालिकणे पत्ता सव्वस्स सामित्तं ॥ १३ ॥ तह जो भव्वो पाविय वयाई पालेइ अप्पणा सम्मं । अण्णेसि वि भव्वाणं देइ अणेगेसि हियहेउं ।। १४ ॥ सो इह संघपहाणो जुगप्पहाणो त्ति लहइ संसदं । अप्पपरेसिं कल्लाणकारओ गोयमपहु व्व ।। १५ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020963
Book TitleShastra Sandeshmala Part 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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