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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ५३॥ || ५४॥ एसो सावत्थीए नयरीए गिहीवइस्स बंभस्स । पुत्तो नाम कुबेरोत्ति आसि पिउणो य सो दोसो संभूयगणिसमीवे पव्वइओ कियच्चिराणि वि दिणाणि । विणयनएहि वड्डिअ पच्छापरिवडिअ उच्छाहो आवस्सयाइएसुं आलस्सं पइदिणंपि कुणमाणो । गुरुणा सासिज्जंतो साहूहि य कोवमुव्वहइ एसिपि साहुखलिअं पिक्खित्ता भण्णइ निययदुच्चरिअं। रक्खंति न थेवं पि हु परस्स पुण दिति उवएसं बालगिलाणाईणं वेआवच्चं सया वि किच्चंति । गुरुणो वि परेसिं पण्णवंति न सयं पुण करंति एमाइ दूसणाई वागरमाणो किलिट्ठमणवयणो । मरिउं असुरनिकाए, किब्बिसिआसुं सुरिं पत्तो तत्तो चविऊ इण्डिं सावयभावं गओ वि एस इहं। पुव्वाणुवेह उच्चिअ पडुच्च मुणिणो इअ भणेइ ।। ५६ ॥ ॥ ५७॥ ।। ५८॥ ॥ ५९॥ || १ ॥ ॥ रोहिणीज्ञातोपनयः ॥ जह सिट्ठी तह गुरुणो जह नाइजणो तहा समणसंघो । जह वहुया तह भव्वा जह सालिकणा तह वयाई जह सा उज्झियनामा उज्झियसाली जहत्थमभिहाणा। पेसणगारित्तेणं असंखदुक्खक्खणी जाया तह भव्वो जो कोई संघसमक्खं गुरुविइण्णाई। पडिवज्जिउं समुज्झइ महव्वयाई महामोहो ॥ २ ॥ ॥३ ॥ ૬૮ For Private And Personal Use Only
SR No.020963
Book TitleShastra Sandeshmala Part 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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