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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥४८॥ ॥४९॥ ॥ ५० ॥ ।। ५१ ॥ ॥५२॥ ॥५३॥ सच्चित्तअणंतेसुं अणंतर-परंपरेण साहरिए । चउगुरु मासगुरु कमा मीसेसुं मासगुरु पणगा चउगुरु अचित्तगुरु साहरिए अह दायग त्ति थेराई । थेर-पहु-पंड-वेविर-जरियंधव्वत्त-मत्त-उम्मत्ते छिण्णकरचरणगुव्विणिनियलंदुयबद्धबालवच्छाए । खंडइ पीसइ भुंजइ जिमइ विरोलइ दलइ सजियं ठवइ बलि ओयत्तइ पिढराइ तिहा सपच्चवाया जा। साहारणचोरियगं देइ परकं परटुं वा दितेसु एसु चउलहु चउगुरु पगलंतपाउयारूढे। कत्तइ लोढइ पिंजइ विक्खिणइ पमद्दए य मासलहू छक्कायवग्गहत्था समणट्ठा णिक्खिवित्तु ते चेव । घटुंती गाहंती आरंभंतीइ सट्ठाणं भू-जल-सिहि-पवण-परित्तघट्टणागाढगाढपरियावे । उद्दवणे वि य कमसो पणगं लहु-गुरुयमास-चउलहुया लहुमासाई चउगुरु अंतं विगलेसु तह अणंतवणे । पंचिदिएसु गुरुमासाइ जाव कल्लाणगं एगं एगाइ दसंतेसुं एगाइ दसतयं सपच्छित्तं । तेण परं दसगं चिय बहुएसु वि सगल-विगलेसु पुढवाइ जिउम्मीसे चउलहु पणगं च बीयउम्मीसे। मिस्सपुढवाइ मीसे मासलहुं पावए साहू चउगुरु सच्चित्तअणंतमीसिए मिस्सणंतओम्मीसे । मासगुरु दुविहं पुण अपरिणयं दव्व-भावेहि ओहेण दव्वभावापरिणयभेएसु दुसु वि चउ लहुयं । दव्वापरिणमिए पुण जं नाणतं तयं सुणह ॥५४॥ ॥५६॥ ।। ५७॥ ॥ ५८॥ ॥ ५९॥ ४३ For Private And Personal Use Only
SR No.020963
Book TitleShastra Sandeshmala Part 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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