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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org चउदसपुव्वी जिणकप्पिएस पढमम्मि चैव संघयणे । एयं वोच्छिण्णं खलु थेरा वि तया करेसी य महयरगागारेहिं अण्णत्थं वि कारणम्मि जायम्मि । जे भत्तपरिच्चायं करिंति सागारकडमेयं Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सव्वं असणं, सव्वं च पाणगं, सव्वखज्ज - भुज्जविही । वोसिरइ सव्वभावेण भणियमेयं निरवसेसं वि (नि?) ज्जायकारणम्मि य महयरया नो कर्रिति आगारा । कतारवित्ति - दुब्भिक्खयाई एवं निरागारं दत्तीहिं कवलेहि व घरेहिं भिक्खाहिं अहव दव्वेहिं । जे भत्तपरिच्चायं करिति परिमाणकडमेयं अंगुट्ठ- गंठि- मुट्ठी- घर - सेउस्सास - थिबुग जोइक्खे । भणियं संकेयमिणं धीरेहिं अणंतनाणीहि अद्धापच्चक्खाणं जं तं कालप्पमाणएहिं । पुरिमड्ड - पोरिसीहिं मुहुत्त - मासऽद्ध-मासेहिं नवकार पोरिसीए पुरिमनेक्कासणे - गठाणे य । आंबिल अब्भत्तट्टे चरिमे अभिग्ग विगई दो चेव नमोक्कारे, आगारा छ च्च पोरिसीए य । सत्तेव य पुरिमडे, एगासणगम्मि अट्ठेव सत्तेगट्टाणस्स उ, अद्वेव य अंबिलम्मि आगारा । पंचेव अभत्तट्ठे, छप्पाणे, चरिम चत्तारि पंच चउरो अभिग्गहे, निव्विए अट्ठ नव य आगारा । अप्पाउरणे पंच उ, हवंति सेसेसु चत्तारि नवणी ओगाहिमगे अद्दव - दहि- पिसिय- घय-गुले चेव । नव आगारा तेसिं, सेसदव्वाणं तु अद्वेव ૧૫૫ For Private And Personal Use Only ॥ १० ॥ ॥ ११ ॥ ॥ १२ ॥ ॥ १३ ॥ ॥ १४ ॥ ॥ १५ ॥ ॥ १६ ॥ ॥ १७ ॥ ॥ १८ ॥ ॥ १९ ॥ ॥ २० ॥ ॥ २१ ॥
SR No.020963
Book TitleShastra Sandeshmala Part 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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