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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विणयाओ नाणं, नाणाओ, दंसणं, दंसणाओ चरणं तु । चरणाहितो मुक्खो, मुक्खे सुक्खं अणाबाहं ॥ ३१ ॥ ॥१॥ ॥ २ ॥ ॥ ३॥ ॥४ ॥ ॥ प्रत्याख्यानभाष्यम् ॥ अणागय १ मइक्कंतं २ कोडी सहियं ३ नियट्टियं ४ चेव। सागार ५ मणागारं ६ परिमाणकडं ७ निरवसेसं ८ संकेय ९ चेव अद्धाए १० पच्चक्खाणं तु दसविहं । सयमेवऽणुपालणीयं दाणुवएसे जह समाही होही पज्जोसवणा मम य तया अंतराइयं हुज्जा । गुरुवेयावच्चेणं तवस्सि-गेलण्णयाए वा सो दाय तवोकम्म पडिवज्जइ तं अणागए काले । एयं पच्चक्खाणं अणागयं होइ नायव्वं पज्जोसवणाइ तवं जे खलु न करिन्ति कारणे जाए। गुरुवेयावच्चेणं तवस्सि-गेलण्णयाए वा सो दाय तवोकम्मं पडिवज्जइ तं अणिच्छिए काले । एयं पच्चक्खाणं अइक्कंतं होइ नायव्वं । पट्ठवणओ य दिवसो पच्चक्खाणस्स निट्ठवणओ य । जहियं समिति दोण्णि वि तं भण्णइ कोडिसहियं तु मासे मासे य तवो अमुगो अमुगदिवसम्मि हवई उ। हटेण गिलाणेण व कायव्वो जाव उस्सासो एयं पच्चक्खाणं नियंटियं धीरपुरिसपण्णत्तं । जो गिण्हइ अणगारो अणिस्सियप्पा अपडिबद्धो ॥ ५ ॥ ॥ ६ ॥ ॥८॥ ॥९॥ ૧૫૪ For Private And Personal Use Only
SR No.020963
Book TitleShastra Sandeshmala Part 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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