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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ४ ॥ ॥ ७ ॥ ॥ ८ ॥ छ ६च्चिय निमित्त हुंती, पंचेव ५ य हेयवो तहा भणिया। चिइवंदणम्मि नेयं नवणउय सयं १९९ च ठाणाणं ॥३॥ तिण्णि नीसीही तिण्णि य पयाहिणा, तिण्णि चेव य पणामा। तिविहा पूया य तहा, अवत्थतियभावणं चेव तिदिसिनिरक्खणविरई, तिविहं भूमीपमज्जणं चेव । वण्णाइतियं, मुद्दाइतियं, तिविहं च पणिहाणं इय दहतियसंजुत्तं वंदणयं जो जिणाण तिक्कालं । कुणइ नरो उवउत्तो सो पावइ निज्जरं विउलं ॥६॥ घर-जिणहर-जिणपूयावावारच्चायओ निसीहितिगं । पुप्फ-ऽखय - थुईएहि तिविहा पूया मुणेयव्वा होइ छउमत्थ-केवलि-सिद्धत्थेहिं जिणाणऽवत्थतिगं । वण्ण -ऽत्थाऽऽलंबणओ वण्णाइतियं वियाणिज्जा जिणमुद्द जोगमुद्दा मुत्तासुत्ती य तिण्णि मुद्दाओ। काय-मणो-वयणनिरोहणं च पणिहाणतियमेयं ॥९॥ पंचंगो पणिवाओ, थुइपाढो होइ जोगमुद्दाए। वंदण जिणमुद्दाए, पणिहाणं मुत्तसुत्तीए ।। १० ॥ दो जाणू दुण्णि करा पंचमगं होइ उत्तमंगं तु । सम्मं संपणिवाओ नेओ पंचंगपणिवाओ ।। ११ ॥ अण्णुण्णंतरअंगुलिकोसागारेहिं दोहिं हत्थेहिं । पिट्टोवरि कुप्परसंठिएहिं तह जोगमुद्द त्ति ।। १२ ॥ चत्तारि अंगुलाई पुरओ ऊणाइं जत्थ पच्छिमओ। पायाणं उस्सग्गो एसा पुण होइ जिणमुद्दा ॥ १३ ॥ मुत्तासुत्तीमुद्दा समा जहिं दो वि गब्भिया हत्था । ते पुण निलाडदेसे लग्गा, अण्णे अलग्ग त्ति ॥ १४॥ ૧૪૮ For Private And Personal Use Only
SR No.020963
Book TitleShastra Sandeshmala Part 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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