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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir || २९ ॥ ॥ ३०॥ ।। ३१॥ ॥ ३२ ॥ एगपरिणाम-परिसंठियस्स उक्कोसिया जहण्णायं । सव्वस्स वि होइ ठिई भणिमो कम्मस्स तं सुणसु आइल्लाणं तिण्हं चरिमस्स य तीस कोडिकोडीओ। इअराण मोहणिज्जस्स सत्तरी होइ विण्णेया णामस्स य गोयस्स य वीसं उक्कोसिया ठिई भणिया। तित्तीस-सागराई परमा आउस्स बोधव्वा वेयणियस्स जहण्णा बारस नामस्स अट्ठ उ मुहुत्ता । सेसाण जहण्ण-ठिई भिण्ण-मुहुत्तं विणिद्दिट्ठा अट्टविहं पि य कम्मं संसार-निबंधणं तु एयम्मि। खीणे लहंति मोक्खं खमणोवाओ इमो तस्स दसण-नाण-चरित्ताणि खवण-हेऊणि दंसणं तिविहं । खइयं खओ वसमियं उवसमियमिह समासेणं आभिणिबोहियनाणं सुयनाणं चेव ओहिनाणं च । तह मणपज्जवनाणं केवलनाणं च पंचमयं सामाइयं च पढमं छेओवट्ठावणं भवे बीयं । परिहार-विसुद्धी य सुहुमं तह संपरायं च तत्तो य अहक्खायं खायं सव्वम्मि जीवलोगम्मि। जं चरिऊण सुविहिया वच्चंति अयरामरं ठाणं ।। ३३ ।। || ३४ ॥ ।। ३५ ॥ ।। ३६ ॥ ।। ३७ ॥ ॥दिक्चतुष्कजीवाल्पबहुत्वं ॥ पपुदउकमसो जीवा, जलवणविगला पणिदिया चेव । दउपूपासुं पुढवी, दउसम तेऊ पुपासुकमा पूपउदासुं वाऊ सत्तण्ह, जमुत्तरेण माणसरं । पच्छिम गोयमदीवो, अहगामा दाहिणे झुसिरं ॥१॥ ॥ २ ॥ ૧૪૬ For Private And Personal Use Only
SR No.020963
Book TitleShastra Sandeshmala Part 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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