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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ १२॥ ॥ १३॥ ॥ १४॥ ॥ १५ ॥ ॥ १६॥ ॥१७॥ सिद्धं जीवस्स अत्थित्तं सद्दादेवाणुमीयए। नासओं भुवि भावस्स सद्दो हवइ केवलो अस्थि त्ति निव्वियप्पो जीवो नियमाओ सद्दओं सिद्धी। कम्हा सुद्धा पयत्ता घड-खरसिंगाणुमाणाओं मिच्छा भवेउ सव्वत्था जे केई पारलोइया । कत्ता चेवोवभुत्ता य जइ जीवो न विज्जई पाणिदया तव नियमा बंभं दिक्खा य इंदियनिरोहो । सव्वं निरत्थयं एयं जइ जीवो न विज्जई छउमत्थअणुवलंभा तहेव सव्वण्णुवयणओ चेव । लोगाइपसिद्धीओं मुत्तो जीवु त्ति नायव्वो मुत्तो अणिदियत्तो खणिओ नवि होइ जाइसंभरणा । थलअहिलासा य तहा अमओ नउ मिम्मउ व्व घडो अमओ अ होइ जीवो कारणविरहा जहेवमागासं । समयं च होइ अणिच्चं मिम्मयघडतंतुमाईयं संकोअ-विकोएहि य जह कम्मं देहलोअमित्तु व्व । हत्थिस्स व कुंथुस्स व पएससंखा समा चेव आयाणे परिभोगे जोगुवओगे कसायलेसा य । आणापाणू इंदियबंधोदयनिज्जरा चेव चित्तं वेयण सण्णा विण्णाणं धारणा य बुद्धी य । ईहा मई वियक्का जीवस्स उ लक्खणा एए चित्तं तिकालविसयं वेअण पच्चक्ख सण्ण अणुसरणं । विण्णाणणेगभेयं कालमसंखेयरं धरणा अत्थस्स ऊह बुद्धी ईहा चिट्ठत्थअवगमो उ मई । संभावणत्थ तक्का गुणपच्चक्खा घडु व्व स्थि ॥ १८ ॥ ॥ १९॥ ॥ २० ॥ ॥ २१ ॥ ।। २२ ॥ ।। २३॥ ૧૪૧ For Private And Personal Use Only
SR No.020963
Book TitleShastra Sandeshmala Part 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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