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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ६ ॥ ॥ ७ ॥ ॥ ८ ॥ एवं तु तेण भमिऊण विनाणपासे, तातं गयं जल महोजलिए सिहिम्मि नाणं जिणेइ न हु तेण विणावरोवि, आरत्तियं तियजुउ सकिलेसहाणी। काऊण सोवि पुण पावइ केवलित्तं, हुज्जा निरंजणपए परमेसरोवि नाणं तु दंसणमओ चरणं पसिद्धं, सारत्तियं जिणमयम्मि सदुत्तरम्मि । तं जेसि नत्थि अरइत्ति नत्थि तं पि, उत्तारिउं तदणुदिति जलस्सधारं आएविणं मिय मिणं पण दीवियाहिं, चारत्तियं भमई सावय भामियंतु । नाणं पणासयमिमं चिय पंच भेयं, दीविउ पंच पुण तत्थ हवंति तेण दीवोवि नाणपुरओ सथओ सुवट्ठि, नासेइ जो वितिमिरं बहिरंतरंगं । तित्थस्स मंगलकए विहिओ हियाय, हुज्जासया दुहहरो सुहकारओ य जं मंगलत्थ महकीरइता कहं सो, उत्तारिउण, पुरओवि ठविज्जइत्ति । जं मंगलंपि न भवे लवणं जडं व, तस्सोवियं सुहमुहं जलधारदाणं भोयावि मंगलमिमं पुरओ धरंति, सेयो निमित्तमियरं न तहा ठवंति । ॥ १० ॥ ॥ ११ ॥ ૧૦. For Private And Personal Use Only
SR No.020963
Book TitleShastra Sandeshmala Part 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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