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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ६४॥ ॥ ६५ ॥ ।। ६७॥ ||६८॥ ॥ ६९ ॥ भणिउं काउस्सग्गो, पच्छित्तं दसविहम्मि पच्छित्ते। पच्छित्तिय खयट्ठाणे, किमागयं इत्थ पच्छित्तं सुत्तुत्तं मुत्तूणं, पुव्वायरियेहिं एयमायरियं । केणावि कारणेणं, तत्तं तु त एव जाणंति जे पुण आगमविहिणा, देवे वंदंति भावसुद्धीए । तेसिं च हीलणा जा, सा कि जुत्तत्ति तं भणह वंदित्तु चेइयाई, मज्झण्हे पोरिसीए तइयाए । पत्ताइ भत्तपाणं, गवेसए दोसरहियं तु गोयर चरिया काले, काउस्सग्गं करित्तु उवओगं । भयवं भे कहिऊण, भत्तं पाणं गहिस्सामि आवस्सइ त्ति भणिए, गुरुणो विय आइसंति तेसि इमं । आउत्तं गहियव्वं, जह गहियं पुव्वसाहूर्हि आहारं गिहिज्जा, उग्गम उप्पायणेसणासुद्धं । आदाय सव्वभंडं, जावद्धं जोयणं गच्छे संजोइणाई मंडलि,-दोसेहिं पंचहिं तु जो रहियं । भुंजिज्जा सुद्धमणो, सो समणो होइ नायव्वो काऊण थंडिलाए, सुद्धि सिद्धंत भासियं तु पुणो। तणडगलउग्गहेणं, उच्चाराई परिठवई उदीणाभिमुहो होऊ, दिवसे रत्तीइ दाहिणाभिमुहो । उच्चारं पासवणं, परिठविज्जा जयं साहू पत्ताई पोरिसीए, तुरियाईं समुट्ठिऊण वंदित्ता। दाऊण खमासमणं, पडिपुण्णा पोरिसी भणइ एवं सुणित्तु सव्वे दुखमासमणे विहीइ दाऊणं । संदिसह निक्खिवामि, कुणंति स सभंड निक्खेवं ॥ ७० ॥ ॥ ७१ ॥ ॥ ७१॥ ॥ ७२ ।। ॥७३॥ ॥ ७४ ॥ ૧૦૭. For Private And Personal Use Only
SR No.020963
Book TitleShastra Sandeshmala Part 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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