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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥५३॥ ॥ ५४॥ ॥५६॥ ॥ ५७॥ भयवुग्घाडा पोरिसि, इरियापडिक्कमण पुव्वगं विणया। इक्क खमासमणेणं, हवंति सव्वे वि उवउत्ता उट्ठित्तु आसणाउ, पिहु पिहु भणंति कयखमासमणा । संदिसिय भंडगाइ, बीए भंडं पडिलेहेमि एयं भणित्तु वयणं, भंडयपडिलेहणं तह कुणंति । भायण निस्सिययाणं, उवगरणाणं च सत्तण्हं पडिलेहणाउ विहि रिसि, मभिनाऊणं च कालवेलाए। वंदिज्झ चेइयाई, भत्तीइ विहारठाणम्मि तयभावे पुवुत्तर, दिसिम्मि होऊ ठवित्तु ठवणं च। अणुओगदारसुत्ते, भणियाण दसण्ह - मण्णयरं छेदग्गंथ महानिसीहपवरे तिक्कालिए चेइए वंदिज्जा भणियं थवं थुइविहि काऊण भावुज्जुओ। नायाधम्मकहाउ बीयतइ उवंगम्मि पण्णत्तिए जंबुद्दीव विवाहनाम पुरउ उत्तं जहा आगमे उद्धट्ठिएहिं थुइउ, सक्कथयं तहय उवनिविटेहिं । भणिऊण काउस्सग्गांतर, थुइ लोगाइ थुइ रहियं एवं सुयाणुसारा, विहिणा चियवंदणं च कायव्वं । जं अण्णहा वि दीसइ, गच्छायरणाइ तं नेयं अट्ठथुइ पंच सक्कथव, काउस्सग्गलोग सव्वाई। सिद्धंतो थुइ पाढो, सुत्ते चिइ वंदणं न इमं नाणाऽविरयसुरेसु, चेइय सद्दो न संमउ समए । नाणस्स सुरसुरीणं, नहु अरिहत्तं पि संभवइ चेइय वंदण समए, एएसिं इत्थ नत्थि अहिगारो। पढमोवंगे अंगे, तइए तह पंचमंगम्मि ।। ५८ ॥ ॥ ५९॥ ॥ ६०॥ ।। ६१ ॥ ॥ ६२॥ ૧૦૬ For Private And Personal Use Only
SR No.020963
Book TitleShastra Sandeshmala Part 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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