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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org जे विय संकष्पवियप्प - वज्जिया हुंति निम्मलप्पाणो । ते चेव नवपयाई, नवसु पयेसु च ते चेव झाया झायंतो, अरिहंतं रूवसुपयपिंडत्थं । अरिहंतपयमयं चिय, अप्पं पिक्खेइ पच्चक्खं रूवाईय सहावो, केवलसण्णाणदंसणाणंदो । जो चैव य परमप्पा, सो सिद्धप्पा न संदेहो पंचप्पत्थाणमयायरिय - महामंत झाणलीणमणो । पंचविहायारमओ, आयच्चिय होइ आयरियो महपाणझायदुवाल-संग-सुत्तत्थ-तदुभयरहस्सो । सज्झायतप्परप्पा, एसप्पा चेव उज्झाओ रयणत्तएण सिवपह- संसाहणसावहाणजोगतिगो । साहु हवइ एसो, अप्पुच्चिय निच्चमप्पमत्तो मोहस्स खओवसमा, समसंवेगाइलक्खणं परमं । सुहपरिणाममयं नियमप्पाणं दंसणं मुणह नाणावरणस्स खओ - वसमेण जहट्ठियाण तत्ताणं । सुद्धावबोहरूवो, अप्पुच्चिय वुच्चए नाणं सोलसकसायनवनो- कसायरहियं विसुद्धलेसागं । ससहावठियमप्पाण- मेव जाणेह चारितं इच्छानिरोहओ सुद्ध-संवरो परिणओ अ समयाए । कम्माइ निज्झरंतो, तवोमओ चेव एसप्पा Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एवं च ठिए अप्पाण-मेव नवपयमयं वियाणित्ता । अप्पम्म चेव निच्चं, लीणमणा होह भो भविया ! जियंतरांगारिगणे सुनाणे, सुप्पाडिहेराइसयप्पहाणे । संदेहसंदोहरयं हरंते, झाएह निच्चं पि जिणारिहंते 304 For Private And Personal Use Only ॥ १०४ ॥ ॥ १०५ ॥ ॥ १०६ ॥ ॥ १०७ ॥ ॥ १०८ ॥ ॥ १०९ ॥ ॥ ११० ॥ ॥ १११ ॥ ॥ ११२ ॥ ॥ ११३ ॥ ॥ ११४ ॥ ॥ ११५ ॥
SR No.020962
Book TitleShastra Sandeshmala Part 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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