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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ८० | ॥ ८१ ॥ ॥ ८२ ॥ || ८३ ॥ ॥ ८४ ॥ ॥ ८५॥ सयनाणं चेव दुवालसंगरूवं परूवियं जत्थ। लोयाणुवयारकरं, तं सण्णाणं मह पमाणं तत्तुच्चिय जं भव्वा, पढेति पाढंति दिति निसुणंति । पूयंति लिहावंति य, तं सण्णाणं मह पमाणं जस्स बलेण अज्ज वि, नज्जइ तियलोयगोयरवियारो । करगहियामलयं पिव, तं सण्णाणं मह पमाणं जस्स पसाएण जणा, हवंति लोयम्मि पुच्छणिज्जा य । पुज्जा य वण्णणिज्जा, तं सण्णाणं मह पमाणं जं देसविरइरूवं, सव्वविरइरूवयं च अणुक्कमसो । होइ गिहीण जईण, तं चारित्तं जए जयइ नाणंपि दंसणंपि य, संपुण्णफलं फलंति जीवाणं । जेण चिय परियरिया, तं चारित्तं जए जयइ जं च जईण जहुत्तर-फलं सुसामाइयाइ पंचविहं । सुपसिद्धं जिणसमए, तं चारित्तं जए जयइ जं पडिवण्णं परि--पालियं च सम्मं परूवियं दिण्णं । अण्णेसिं च जिणेहिवि, तं चारित्तं जए जयइ छक्खंडाणमखंडं, रज्जसिरिं चइय चकवट्टीहि । जं सम्म पडिवण्णं, तं चारित्तं जए जयइ जं पडिवण्णा दमगाइणो वि जीवा हवंति तियलोए। सयलजणपूयणिज्जे, तं चारितं जए जयइ जं पालंताण मुणीसराण, पाए नमंति साणंदा । देविंददाणविंदा, तं चारित्तं जए जयइ जं चाणंतगुणं पि हु, वणिज्जइ सतरभेअदसभेअं। समयम्मि मुणिवरेहि, तं चारित्तं जए जयइ ।। ८६ ॥ ॥ ८७।। ।। ८८ ॥ ॥ ८९ ॥ ॥ ९०॥ ॥९१॥ 303 For Private And Personal Use Only
SR No.020962
Book TitleShastra Sandeshmala Part 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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