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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥४७॥ ॥४९॥ ॥ ५० ॥ आयार-वियारण वयण-चंदिमा नियमोहतिमिरभरे। सीलंको हुयण नहं, गणम्मि हरिणक-संकासो तं तिहुयण-पहुपय-कमल-जुयलभसलं भवारिविहियभयं । जीवाणमभयदाणम्मि, पच्चलं निच्चलं वंदे ॥४८॥ सुपसत्थ-वीरजिण-तित्थ-संभवो भव्वजणमणोहरणो । सिविद्धमाणसूरी, जोगपसंगो तयं वंदे पुरओ दुल्लह-महिवल्लहस्स अणहिल्लवाडयपुरम्मि। सुविहिय-विहार-पक्खो, पयडीओ समयजुत्तीए अपडिबद्ध-विहारेण, विहरिया जे पणट्ठ-पडिवक्खा । ताणं जिणेसरसूरीण संपयं पणिवयामि पए ॥५१॥ सिरिसूरिजिणेसर-वयण-पंकए महुयरव्व जे लीणा। नाणगुणलद्धिनिलए, आसाइयसमयमयरंदा ॥५२॥ सिरिवीरजिणेसर-समय-रयण-कोसोवएस-रयणाई । पुण परिवज्जिएहि, कयाइनो पण्ण पुव्वाइं ॥५३॥ कय करणाहिं काउं, नवंग वित्तीउ जेहि दिण्णाई । अविवेय-रोरयालिंगियाण जंतूण जियलोए जइ केइ नाण-चरणेहिं, सालिणो आगमेसिणो गुरुणो । संपइ पुण ते गुण-तुल्लयाए लोए न दीसंति ॥५५ ।। भवकूपनिवडियाणं, पाणिणं पाणिदाण-दुल्ललिया । सिरिअभयदेवगुरुणा, विवरणकरणेन विक्खाया ॥५६॥ नाण-महुपाण-लालस-सुसीस भसलउलसंकुलविमले। तेसि महं तिकालं, चरणंबुरुहे पणिवयामि ॥५७ ।। जे समय--पाढया समय-जाणया समणभासया सम्म । समए समएण समं मुणिऊण कुणंति किच्चा ॥५८॥ ૨૪૩ For Private And Personal Use Only
SR No.020962
Book TitleShastra Sandeshmala Part 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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