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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ४० ॥ अकगुरु निण्हवेणं, सूरि सयासम्मि जिणमयं सोउं । परिवज्जिय सावज्जं, पव्वज्जगिरिसमारूढो ॥ ३५ ॥ सीहत्ता निक्खंतो, सीहत्ताएउ विहरिओ जो उ। साहिय नवपुव्व सुओ, संपण्ण पसण्णसूरिपओ ॥ ३६॥ सुरवरपहुबुद्धेणं, महाविदेहम्मि तित्थनाहेणं । कहिउं निगोयजीवाण-जाणओ भारहे सूरी ॥ ३७॥ जस्स सयासे सक्को, मोहणरूवेण पुच्छइ एवं । भयवं फुडमण्णेसि य, मह केत्तिय माउयं कहसु ॥ ३८॥ सक्को भवंति भणिओ, मुणिउं जेणाउयप्पमाणेणं । पुढेण निगोयाणं पि, वण्णणा जेण निद्दिट्ठा ॥ ३९ ॥ हरिणा हरसियचित्तेण, संथुओ जो तवो महासत्तो। जेण समयम्मि ठवणा, विहिया गुणपक्खवाएणं तं सूरिमज्ज-रक्खिय-मक्खयपयपावणम्मि पाणीणं । पडिहत्थमतुच्छ महं, वंदे निद्दलियदुरिओहं विहिय जिणसमय-सम्मय-सुदेसणाजणियजणमणाणंदा । अण्णे वि चरणगुणरयण-जलहिणो जे जए जाया परवाइवारवारण-वियारणा जे मियारणो गुरुणो। ते सुगहिय नामाणं, सरणं मह हुँतु पणय पया ॥ ४३ ॥ अण्णाणनीरपउरे, सण्णा संसारसायरे पडिया । करुणाए जेहि ठविया, जिणपवयणजाणवत्तम्मि पालियसीलंगाणं, संगहिय-समग्ग-समय-साराणं । चउदस-सय-पगरण-देसणेण संपण्णकित्तीणं जिणसमय-संजयाणं, मुद्धा किरिया परूविया जेहिं । तेण महं तेसि नमो, हरिभद्दमुणीसराणं पि ॥ ४१ ॥ ॥ ४२ ॥ ॥४४॥ ॥ ४५ ॥ ॥ ४६॥ ૨૪૨ For Private And Personal Use Only
SR No.020962
Book TitleShastra Sandeshmala Part 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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