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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir माण महीहरि मा चडहु, अवगुण भिल्लिहि किण्णि । जइ कुसलिण रक्खिउ मणहु, भवियहु रयणिहिं तिण्णि ॥ १०७ ।। माय भुयंगी गरुल भरु, जहि विक्खेरइ निच्चु । तहिं गुरु-कम्मई सुय अमउ, दूसिज्जइ निमिच्चु || १०८ ॥ गुरु पवहणि आरुहिवि लहु, लोह-समुद्द तरेहि। सो पायालि लुहावहइ, अप्पाणउं पाडेहि ॥ १०९ ॥ पाव वयंस पसंग रसु, मं कइयह वि करेसु । धम्मु चरंतहु जिम्व सयलु, छिज्जइ कम्म किलेसु ॥११० ॥ तिविहु जु चेइउ वण्णियउं, भगवंतिहिं सिद्धति । निस्सु अणिस्सु अणाययणु, तं सद्दहहिं अ...[?च्चं] ति ॥ १११ ।। विहि चेईहरि पइ-दियहु, गमणच्चणहिं करेहु । अण्णइ दुण्णिवि परिहरहु, मा संसारि पडेहु ॥ ११२ ॥ निसणहु निच्चु वि जिण समउ, सेवहु सुहगुरु पाय । सव्व विरइ मणु संठवहु, जेण न हुँति अवाय ॥ ११३ ॥ तित्थयराण परायणह, उवसंतह सुजयाण । सिवसुह लालस माणसहं, भदु हवउ भवियाण ।।११४ ।। भव विरसत्तणु भाविरह, तव संजम निरयह। वेच्चइ जाह मणुस्स भवु, ते निहि सव्व सुहहं धम्मुवएसं पयं आराहेहिति जे महासत्ता । चारित्त वं[?चं]दन धवलिय तिजया जाहिति ते सिद्धि ॥ ११६ ॥ ૨૩૮ For Private And Personal Use Only
SR No.020962
Book TitleShastra Sandeshmala Part 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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