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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org जे चिइवंदणि वंदणई - पडिकमणइ उज्जुत्त | ते नियकुल सरवर कमल, सुस्सावय सुपुत्त - पूणि मुणि-नमणि, निच्चु पयच्चु करेंति । ते कल्ला निहाण फुडु, लहु पव्वज्ज धरेंति जे विज्जंतई घणि दविणि, वियरहिं पत्ति न दाणु । fire दुहिह दुत्थिय [ह], तह कर्हि भवि सम्माणु निम्मलु सोलु न पालियउ, दमिय न करण तुरंग । मण मगलु नो वसिय कयउ, किह वुण्णइ नीसंगु सत्ति न गूहइ मिस करइ, चरइ न तवु समुद्रु । दुखड्ड उडि णु फुडु अप्पा छुट्टु Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिण संसिउ निच्चुवि करहि सम धम्मिय वच्छल्ल। सासण सार मुदार मणु, जिम्व होयहि नीसल्ल जण जिण पवयण मइलियइ, जं निय कुलह विरद्ध । तं मा काहिसि जिम होयहि, कम्म विसुज्जु विसुद्ध २३७ For Private And Personal Use Only ॥ ९५ ॥ ॥ ९६ ॥ ॥ ९७ ॥ ॥ ९८ ॥ ॥ ९९ ॥ ॥ १०० ॥ जह बुत्तिवि मणि तुल्ल गुण, सुसमण लिंगिय मुंड । तह फुडु जड चूडामणि, हंस न कथूर [? कथइ] मुरण्डा ॥ १०२ ॥ जे पावेविणु जिण वयण, उस्सुत्तई भाति । ते पाविवि चितारयणु, [ खंडो] खंडि करंति जो चितामणि पत्थरह, सुरतरु विस रुक्खाण । सो अन्तर बुह वज्जरहिं, सुसमण लिंग-धराण जो अवगण्णिवि मुणि रयण, लिंग सुभत्ति करेइ । सो छंडेविणु अमय रसु, हालाहलु चक्खेइ कोह दवानल उल्हवहु, समय मेय पूरेण । भव संतावु...[व] समु जिम्व, मुसुसु सूरहु दूरेण ॥ १०१ ॥ ॥ १०३ ॥ ॥ १०४ ॥ ॥ १०५ ॥ ॥ १०६ ॥
SR No.020962
Book TitleShastra Sandeshmala Part 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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