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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नणु इह देसणिसेहे णोसद्दो तेण तस्स देसस्स। अत्थु णिसेहो किरियारूवस्स ण सत्तिरूवस्स ॥१३२॥ जइ किरियारूवं चिय चारित्तं णेव आयपरिणामो । तो किरियारूवं चिय सम्मत्तं णायपरिणामो || १३३ ॥ जं पुण तं इहभवियं तं किरियारूवमेव णेअव्वं । अहवा भवो ण मोक्खो णो तम्मि भवे हिअमहवा ॥१३४॥ ण य मोक्खसुहे लद्धे तयणुट्ठाणस्स हंदि वेफल्लं । तक्कारणस्स इहरा नाणस्स वि होइ वेफल्लं ॥ १३५ ॥ णेव पइण्णाभंगो अहिआवहिपूरणम्मि चरणस्स । सा वा किरियारूवे सुअकरणे जं करेमित्ति ॥ १३६ ।। अह चरणमणुट्ठाणं तं ण सरीरं विणु त्ति जइ बुद्धी। तेण विणा नाणाई ता तस्स अहेअं पत्तं ॥ १३७ ॥ किरिया खलु ओदयिगी खइयं चरणं ति दोण्हमह भेओ। सा तेण बज्झचरणं अब्भंतरयं तु परिणामो ॥१३८ ।। आया खलु सामाइए आया सामाइअस्स अट्ठो त्ति । तेणेव इमं सुत्तं भासइ तं आयपरिणाम ॥ १३९ ॥ ण य खइयं पि चरितं जोगणिरोहेण तं विलयमेइ । अण्णह विहलो पत्तो विरहो चारित्तमोहस्स ॥१४०॥ तेणं सुद्धवओगो चरणं नाणाउ दंसणमिवण्णं । कारणकज्जविभागा सततमिय किण्ण सिद्धेसु ॥१४१ ।। एत्थ समाहाणविही जो मूलगुणेसु होज्ज थिरभावो। सो परिणामो किरिया झुंजणकरणं पडिच्छंतो || १४२ ।। अण्णह वक्कजडाणं चंडाणं चंडरुद्दपभिईणं । णेव सिया चारित्तं सुद्धवओगे त्ति काऊणं ॥१४३॥ ૧૨ For Private And Personal Use Only
SR No.020962
Book TitleShastra Sandeshmala Part 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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