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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ण पुरीसाइ दुगुंछियमेसि णिद्दड्डमोहबीआणं । अइसयओ ण परेसिं विवित्तदेसे विहाणा य || १२०॥ जो पुण भुत्तिअभावो केवलिणो अइसउ त्ति जंपेइ। सो वायामित्तेणं साहेउ सुहं खपुष्पं पि || १२१ ॥ एवं कवलाहारो जुत्तीहिं समत्थिओ जिणवराणं । पुव्वायरिएहि जहा तहेव लेसेण उवइट्ठो || १२२ ॥ तेणं केवलनाणी कयकिच्चो चेव कवलभोई वि। नाणाईण गुणाणं पडिघायाभावओ सिद्धो ॥ १२३ ॥ नाणस्स विसुद्धीए अप्पा एगन्तओ ण संसुद्धो। जम्हा नाणं अप्पा अप्पा नाणं व अण्णं वा ।। १२४ ॥ एवं परमप्पत्तं नाणाइदुवारगं मुणेअव्वं । राव्वह परमप्पत्तं सिद्धाणं चेव संसिद्धं || १२५ ॥ तस्स य सहावसिद्धा किरिया गुणकरणजोगमहिगिच्च । कम्मुवणीआवि हवे झुंजणकरणं तु अहिगिच्च || १२६ ॥ अह सो सेलेसीए झाणाणलदड्ढसयलकम्ममलो। कणगं व सव्वह च्चिय लद्धसहावो हवइ सिद्धो ॥ १२७॥ तस्स वरनाणदंसणवरसुहसम्मत्तचरणनिच्चठिई । अवगाहणा अणंताऽमुत्ताणं खइयविरिअं च ॥ १२८॥ नाणावरणाईणं कम्माणं अट्ठ जे ठिआ दोसा। तेसु गएसु पणासं एए अट्ठ वि गुणा जाया ॥ १२९ ॥ थिरियावगाहणाउ पत्ते णामगोत्तकम्मखए। चरणं चिय मोहखए इय अट्ठगुण त्ति बिंति परे ॥ १३० ॥ नणु सिद्धते सिद्धो नोचारित्ती अ णोअचारित्ती । भणिओ तो तस्स गुणो चारित्तं जुज्जए कम्हा ॥ १३१ ॥ १५ For Private And Personal Use Only
SR No.020962
Book TitleShastra Sandeshmala Part 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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