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________________ चोक २२-३४ ६१ विषय-सूची लोक । शरीर, तदाश्रित रोगादि एवं कर्मकृत क्रोधादि स्त्रीका मस्थिर सौंदर्य मूर्स जनों के लिये ही विकारोंकी आत्मासे भिन्नता मानन्दजनक होता है । १२-११ सर्व चिन्ता त्याज्य है, इस बुद्धिके द्वारा आविष्कृत स्त्रीका शरीर घृणास्पद है तत्त्व चैतन्य-समुद्रको शीघ्र बढ़ाता है ३५ बीके विषयमें अनुरागवर्धक काम्यको रचनेवाला मेरा स्वरूप ऐसा है कवि कैसे प्रशंसनीय कहा जाता है १६-. बन्धके कारणभूत मनके नियत्रणसे वह उस जब परधन-स्त्रीकी अभिलाषा न करनेवाला __बन्धनसे मुक्त कर देगा गृहस्य देव कहा जाता है तब मुनि क्यों न देवोंका देव होगा मनुष्य-तरुको पाकर अमृत-फलको ग्रहण करना योग्य है सुख और सुखाभास योगियोंका निर्दोष मन अज्ञानान्धकारको नष्ट स्त्रीका परित्याग करनेवाले साधुओंको पुण्यात्मा __ करता है जन भी नमस्कार करते हैं योगी कब सिद्ध होता है तपका भनुष्ठान मनुष्य पर्यायमें ही सम्भव है ग्रन्थकार द्वारा कामरोग की नाशक वर्ति मात्मस्वरूपका विचार (ब्रह्मचर्यरक्षावर्ति) के सेवनकी प्रेरणा २२ निश्चयपञ्चाशत्के रचनेका उल्लेख चित्तमें भारमतत्त्वके स्थित होनेपर इन्द्रकी | १३. ऋषभस्तोत्र १-६१, पृ. २०१ सम्पदासे भी प्रयोजन नहीं रहता नाभिराजके पुत्र ऋषभ जिनेन्द्र जयवन्त हों । १२. ब्रह्मचर्यरक्षावर्ति १-२२, पृ. १९३ / ऋषभ जिनेन्द्रका दर्शनादि पुण्यारमा जनोंके ही द्वारा किया जाता है कामविजेता यतियोंके लिये नमस्कार जिनदर्शनका माहात्म्य ब्रह्मचर्य व ब्रह्मचारीका स्वरूप जिनेन्द्रकी स्तुति करना असम्भव है यदि ब्रह्मचर्यके विषयमें स्वममें कोई दोष उत्पन्न जिनके नामस्मरणसे भी भभीष्ट लक्ष्मी प्राप्त हो तो भी रात्रिविभागके अनुसार मुनिको होती है उसका प्रायश्चित्त करना चाहिये | ऋषभ जिनेन्द्र के सर्वार्थसिद्धिसे अवतीर्ण नामचर्यकी रक्षा मनके संयमसे ही होती है . होनेपर उसका सौभाग्य नष्ट हो गया था बाम गौर अभ्यन्तर ब्रह्मचर्यका स्वरूप व पुथिवीके 'वसुमती' नामकी सार्थकता নক কাজ पुत्रवती खियोंमें महदेवीकी श्रेष्ठता अपनी व्रतविधिके रक्षणार्य मुनिको भी मात्रका इन्द्र के निर्निमेष बहुत नेत्रोंकी सफलता परित्याग करना चाहिये सूर्य आदि ज्योतिषी मेल्की प्रदक्षिणा चीकी वार्ता भी मुनिधर्मको नष्ट करनेवाली है . किया करते हैं रागपूर्वक सीका मुखावलोकन व स्मरण प्रतिष्ठा, मेरुके ऊपर जिनजन्माभिषेक "-१२ पक्ष एवं तप मादिको नष्ट करनेवाला है ८-९ कल्पवृक्षोंके नष्ट हो जानेपर उनके कार्यको मुनिके लिये किसी भी पीकी प्राप्तिकी सम्भावना ____ एक ऋषम जिनेन्द्रने ही पूरा किया न रहनेसे तद्विषयक मनुरागको छोडना ही पृथिवीकी रोमांचता चाहिये ऋषम जिनेन्द्रकी विरक्ति व पृथिवीका परित्याग १५-१६ श्रावक पीरूप गृहसे गृहस्थ, तथा मुनि उसके ध्यानमें भवस्थित ऋषभ जिनेन्द्रकी शोभा 1-16 परित्यागसे ब्रह्मचारी (मनगार) होता है" घातिचतुष्कका क्षय और केवलज्ञानकी उत्पत्ति १९ SM
SR No.020961
Book TitlePadmanandi Panchvinshti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Siddhantshastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year2001
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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