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________________ विषय-सूची १३ १८ श्लोक १. धर्मोपदेशामृत १-१९८. प्र.१ दुर्जनकी संगतिकी अपेक्षा तो मरना अच्छा है मुनिधर्मका स्वरूप मादि जिनेन्द्रका स्मरण चेतन आत्माको छोड़कर परमें अनुराग शान्तिनाथका स्मरण कर्मबन्धका कारण है धर्मोपदेष्टा जिनदेवका स्मरण मूलगुणोंके बिना उत्तरगुणोंके पालनका प्रयत्न धर्मका स्वरूप व उसके भेद घातक हैं १० धर्मकी मूलभूत दयाके धारणकी प्रेरणा वस्नके दोषोंको दिखलाकर दिगम्बरत्वकी प्रशंसा ॥ प्राणियों के वधमें पित्रादिके वधका दोष सम्भव है ९. केशोंका लोच वैराग्यादिको बढ़ानेवाला है ४२ जीवितका दान सर्वश्रेष्ठ दान है स्थितिभोजनकी प्रतिज्ञा दयाके विना दान, तप व ध्यानादि निरर्थक हैं " समताभाव १४-१५ मुनिधर्मके मालम्बन सद्गृहस्थ हैं प्रमादरहित होकर एकान्तवासकी प्रतिज्ञा १६ गृहस्थाश्रमका स्वरूप गृहस्थधर्मके ग्यारह स्थानोंका निर्देश संसारके स्वरूपको देखकर हर्ष-विषादकी व्यर्थता . समस्त व्रतविधान व्यसनोंके परित्यागपर निर्भर है १५ राग-द्वेषके परित्यागके विना संवर व निर्जरा महापापस्वरूप सात व्यसनोंका नामनिर्देश १६ सम्भव नहीं है १९ थत सब व्यसनोंमें प्रमुख है संसारसमुद्रसे पार होनेकी सामग्री । १७-१८ मांसका स्वरूप व उसके भक्षणमें निर्दयता मोहको कृश करनेके विना तप मादिका क्लेश १९-२० सहना व्यर्थ है मचका स्वरूप व उसके पीनेसे हानि २१-२२ भोषीकी शिला समान वेश्यायें नरकका द्वार हैं २३-२४ जो कषायोंका निग्रह नहीं करता है उसका परीषहसहन मायाचार है मालेट (शिकार) में निर्दयतासे दीन हीन प्राणियोंका म्यर्थ वध किया जाता है समस्त अनर्थोंका कारण अर्थ (धन) ही है ५२ २५-२६ शय्याके लिये घास भादिकी भी अपेक्षा करनेपर। परवध और धोखादेहीका फल परभवमें उसी निर्ग्रन्थता नष्ट होती है प्रकारसे भोगना पड़ता है २७-२८ क्रोधादिसे कादाचिस्क और परिग्रहसे शापतिक परची भौर परधनके अनुरागसे होनेवाली कर्मका बन्ध होता है ५४ हानियां .२९-३० मोक्षकी भी अभिलाषा उसकी प्राप्तिमें बाधक है ५५ उक्त प्रवादि सात व्यसनोंके कारण कष्टको प्राप्त परिग्रहादिकी निन्दा हुए युधिष्ठिर आदिके उदाहरण ३१ म्यसन सात ही नहीं, और भी बहुत-से हैं ३२ साधुप्रशंसा म्यसनोंसे होनेवाली हानिको दिखलाकर उनसे भाचार्यका स्वरूप ५९-६० विमुख रहनेकी प्रेरणा उपाध्यायका स्वरूप मिथ्यारष्टि आदिकी संगतिको छोड़कर साधुभोंका स्वरूप व उनकी सहनशीलता ६२-६६ सत्पुरुषोंकी संगतिके लिये प्रेरणा ३४-३५ भात्मज्ञानके विना किया गया काय क्लेश धान्य कलिकालमें दुष्टोंके मध्यमें साधुजनोंका जीवित (फसल) से रहित खेतकी रक्षाके समान रहना कठिन है म्यर्थ है
SR No.020961
Book TitlePadmanandi Panchvinshti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Siddhantshastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year2001
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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