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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir श्री व्यवहारसूत्रम् दशम उद्देशकः १७१२ (B) आचारप्रकल्पो नामाध्यय अथ स्तोककालदीक्षितस्यापि जातव्यञ्जनस्य दीयते ? किं वा न? इत्यत आह सूत्रम्- तिवासपरियागस्स समणस्स णिग्गंथस्स कप्पइ आयारपकप्पे नामं अज्झयणे उद्दिसित्तए ॥ २२॥ _ 'तिवासपरियागस्से 'त्यादि । जातव्यञ्जनस्यापि त्रिवर्षपर्यायस्य श्रमणस्य निर्ग्रन्थस्य कल्पते आचारप्रकल्पो नामाध्ययनमुद्देष्टुम्। यदि पुनस्त्रयाणां वर्षाणामारत उद्दिशति ततस्तस्य प्रायश्चित्तं चत्वारो गुरुकाः । त्रिवर्षपर्यायस्याप्यपरिणामकस्यातिपरिणामकस्य वोद्दिशतश्चतुर्गुरुकम्॥ सूत्रम्-चउवासपरियागस्स समणस्स निग्गंथस्स कप्पति सूयगडे नामं अंगे : उद्दिसित्तए॥ २३॥ ४६३४-४६३८ पंचवासपरियागस्स समणस्स निग्गंथस्स कप्पति दसा-कप्प-ववहारा उद्दिसित्तए ॥२४॥ विअट्ठवासपरियागस्स समणस्स निग्गंथस्स कप्पति ठाण-समवाये उद्दिसित्तए ॥२५॥ ||१७१२ (B)। दसवासपरियागस्स समणस्स निग्गंथस्स कप्पति विवाहे नामं अंगे उद्दिसित्तए ॥२६॥ सूत्र २२-२६ गाथा अध्ययनयोग्यवयः For Private And Personal
SR No.020939
Book TitleVyavahar Sutram Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunichandrasuri
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2010
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vyavahara
File Size13 MB
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