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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री व्यवहार सूत्रम् तृतीय उद्देशकः ७४७ (A) ***** www.kobatirth.org उपसंहारमाह तम्हा न पगासिज्जा, कालगयं एयदोसरक्खठ्ठा । अण्णम्मि ववट्ठविए, ताहे पगा कालगयं ॥ १५६९ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यस्मादेते दोषास्तस्मादेतद्दोषरक्षार्थमाचार्यं कालगतं न प्रकाशयेत् यदा पुनरन्यो गणधरो व्यवस्थापितो भवति, तदा अन्यस्मिन् व्यवस्थापिते कालगतं प्रकाशयेत् ॥ १५६९ ॥ सूत्रम् — निग्गंथीए णं नवडहरतरुणीए आयरियउवज्झाए वीसुंभेज्जा, नो से कप्पड़ अणायरिय-उवज्झाइयाएं होत्तए, कप्पड़ से पुव्वं आयरियं उद्दिसावेत्ता तओ उवज्झायं तओ पच्छा पवत्तिणिं, से किमाहु भंते ? तिसंगहिया समणी निग्गंथी, तं जहाआयरिएणं उवज्झाएणं पवत्तिणीए य ॥ १२ ॥ " निग्गंथीए णं नव- डहर - तरुणाए आयरिय उवज्झाए" इत्यादि । १. इतोऽग्रे आगमप्रकशने श्युब्रींगटिप्पणे (वि- श्युबींग H प्रतौ ) पवत्तिणी य इति पाठः अधिकः ॥ २. इतोऽग्रे आगमप्र. श्युब्रींग टिप्पणे च अप व (वि- श्यु. H ) त्तिणियाए - इति अधिकः पाठः ॥ For Private and Personal Use Only सूत्र १२ गाथा १५६६-१५७० त्रिसंगृहीता श्रमणी ७४७ (A)
SR No.020935
Book TitleVyavahar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunichandrasuri
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2010
Total Pages582
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vyavahara
File Size17 MB
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