SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री व्यवहार सूत्रम् द्वितीय उद्देशकः www.kobatirth.org एगो रक्खगो नगरस्स गावीणं । सो जेहिं ओगासेहिं गावीतो जंतीओ एंतीओ य खेत्ताईणं अवरोहं न करेंति तेसिं ओगासेहिं नेइ आणेइ य, जत्थ य तेणाइभयं नत्थि तत्थ चारेइ, अन्नया दो पुरिसा गाविओ रक्खामित्ति उवट्टिया । अम्हे भइयाए गावीओ रक्खामोत्ति | नागरगा चिंतंति सो एगो न तरइ सव्वस्स नगरस्स गाविओ रक्खिउं तम्हा एए विनिजुज्जंतु त्ति भणिया- रक्खह । तत्थ एगो तस्स पुराणस्स संखेडिपालगस्स निस्साए ५२५ (B) गावीतो नेइ आणेइ य, अजाणतोत्ति काउं तस्सम्मएण चंकमइ | बितितो संखेडिपालतो चिंतेइ - अहमन्नस्स निस्साए न चारेमि सयमेव अहं रक्खिउं समत्थो । सो वरातो अजाणतो इमाणि ठाणाणि न याणइ पाणंधि इत्यादि । ܀܀܀܀܀܀ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाणंधीति देशीपदमेतद् वर्तिनीवाचकम्, ततोऽयमर्थ:- क्षेत्रे क्षेत्रसङ्कुलेषु प्रदेशेषु नगरप्रवेश - निर्गमनयोग्या वर्तिन्य: क्षेत्रपाणन्धयः, ता न जानाति । अजानंश्च ताभिर्गा नयति आनयति च [ यत्र ] क्षेत्रेषु च शाल्यादय उप्तास्तिष्ठन्ति । गावश्च गच्छन्त्य आगच्छन्त्यश्च रक्षमाणा अपि शाल्यादि चरन्ति । ततः क्षेत्रस्वामिभिर्गा धृत्वा गोस्वामिनः क्षेत्रोपद्रवमूल्यं याच्यन्ते । For Private and Personal Use Only गाथा ९८२-९८६ विहारप्रकारा गीतार्थ गीतार्थनिश्रितादयः ५२५ (B)
SR No.020935
Book TitleVyavahar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunichandrasuri
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2010
Total Pages582
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vyavahara
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy