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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ अहम् ॥ श्रीमान् मलयगिरि विरचित विवरणयुक्त भाष्यनियुक्ति समेत---- श्री व्यवहारसूत्रस्यपीठिकाऽनंतर द्वितीयो विभागः। गतो नाम निष्पनो निक्षेपः, संप्रति सूत्रालापक निष्पन्नस्य निक्षेपस्यावसरः, सच सूत्रे सति भवति, मूत्रं चानुगमे, सचानुगमोद्विधा सूत्रानुगमो नियुक्त्य नुगमश्च, तत्र नियुक्त्य नुगमस्त्रि विध स्तद्यथा निक्षेप नियुक्त्य नुगमः उपोद्घात नियुक्त्य नुगमः सूत्र स्पर्शिक नियुक्त्य नुगमश्च, निक्षेप नियुक्त्य नुगमोऽनुगतः; मूत्र स्पर्शिक नियुक्त्य नुगमो वक्ष्यते, उपोद्घात नियुक्त्य नुगम स्त्वाभ्यां द्वार गाथाभ्यां समवगंतव्यः, तद्यथा उद्देसे निदेसे य निग्गमे खित्तकालपुरिसेय । कारणपच्चयलक्खण नए समोयारणाणुमए ॥१॥ कि कइविहं कस्स कहिकेसुकहिंकच्चिरं हवइ कालं। कइसंतरमविरहियं भवागरिसफासणनिरुत्ती ॥२॥ अनयोरर्थः आवश्यक टीका तोऽवसेयः, महार्थत्वात् ; सूत्रस्पर्शिक नियुक्त्य नुगमस्तु सूत्रप्रवृत्ती भवति, सूत्रं सूत्रानुगमे सरप्राप्त एव युगपञ्च मूत्रादयो ब्रजंति । तथा चोक्तं For Private and Personal Use Only
SR No.020933
Book TitleVyavahar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManekmuni
PublisherJain Shwetambar Sangh
Publication Year1926
Total Pages330
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vyavahara
File Size15 MB
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