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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyarmandir ज्यां मुघी तारा पोताना शरीरमा रूप, सौभाग्य क्या यौवनादि गुणो छे त्यांसुधी तेनो तुं अनुभव कर, अने अनुभव करी अमो व्याख्या-5 कालगत थया पछी वृद्धावस्थामा कुलवंशरूप तन्तुनी वृद्धि करीने निरपेक्ष एवो तुं श्रमण भगवान् महावीर पासे दीक्षा लइने गृहवा-18९ शतके प्राप्ति | सनो त्याग करी अनगारिकपणाने स्वीकारजे. त्यारपछी ते जमालि क्षत्रियकुमारे पोताना माता-पिताने ए प्रमणे का के-'हे | दाउद्देशम्म // 844 // माता-पिता! ते बरोबर छे, पण जे तमे मने ए प्रमाणे कयु के-'हे पुत्र ! आ तरुं शरीर (उत्तमरूप, लक्षण व्यंजन अने गुमोथी | // 8441 युक्त छे) इत्यादि यावत् (अमारा कालगत थया पछी) तुं दीक्षा लेजे.' पण ए रीते तो हे माता-पिता ! खरेखर आ मनुष्यनु शरीर दुःखनुं घर छे, अनेक प्रकारना सेंकडो व्याधिओवें स्थान छे, अस्थिरूप लाकडानुं बनेलुं छे, नाडीओ अने स्नायुना समूहथी अत्यन्त विटाएल, माटीना वासणनी पेठे दल छ, अशुचिथी भरपूर छे, जेनु शुश्रूषा कार्य हमेशा चालु छे. जीण मृतक अने जीर्ण घरनी पेठे संडg, पड अने नाश पामबो-ए तेनो सहज धर्मों छे. वळी ए शरीर पहेला के पछी अवश्य छोडवानु छे, तो हे माता-पिता! ते कोण जाणे छ के कोण पहेलां (जशे अने कोण पछी जशे.) इत्यादि. नए णं तं जमालि खत्तियकमारं अम्मापियरो एवं वयासी-इमाओ य ते जाया। विपुलकुलबालियाओसरित्तयाओसरिचयाओ मरिसलावन्नरूवजीव्वणगुणोत्रवेयाओ सरिसएहितो कुलहितो आणिएल्लियाओ कलाकुसलसव्वकाललालियसुहोचियाओ मद्दगुण जुत्तनिउणविणओवयारपंडियवि यक्वणाओ मंजुलमियमहुरमणियबिहसियविप्पेक्खियगतिविसालचिट्टियविसारदाओ अविकलकुलसीलसालिणीओ विसुद्धकुलवंससंताणतंतुबद्धणप्पग (म्भु) भवप्पभाविणीओ मणाणुकूलहियइच्छियाओ अट्ट तुज्झ गुणवल्लहाओ उत्तमाओ निच्च भावाणुत्त For Private and Personal Use Only
SR No.020923
Book TitleVyakhyapragnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages238
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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