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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्याप्राप्ति 1845 // उद्देश // 845 // रसव्वंगसुंदरीओ भारियाओ, तं भुंजाहि ताव जाया ! एताहिं सद्धिं विउले माणुस्सए कामभोगे, तओ पच्छा मुत्तभोगी विसयविगययोजिउनकोउहल्ले अम्हहिं कालगएहिं जाव पचहहिसि / त्यारपछी तेना माता-पिताए ते जमालि क्षत्रियकुमरने आ प्रमाणे को के-'हे पुत्र ! आ तारे आठ स्त्रीओ छे, ते विशाल कुलमा उत्पन्न थयेली अने बाळाओ छे, ते समान त्वचावाळी, समान उमरवाळी, समान लावण्य, रूप अने यौवनगुणथी युक्त छे बळी ते समान कुलथी आणेली, कलामां कुशल, सर्वकाल लालित अने मुखने योग्य छ; ते मार्दवगुणथी युक्त, निपुण, विनयोपचारमा पंडित अने विचक्षण छे; सुंदर मित, अने मधुर बोलनामां, तेमज हारय, विप्रेक्षित, (कटाक्ष दृष्टि), गति, विलास अने स्थितिमां विशारद छ; उत्तम कुल अने शीलथी सुशोभित छ विशुद्ध कुलरूप वंशतंतुनी वृद्धि करवामां समर्थ यौवनवाळी के मनने अनुकूल अने हृद| यने इसके बळी गुणो वडे प्रिय अने उत्तम छे, तेमज हमेशां भावमा अनुरक्त अने सर्व अंगमा सुंदर छे. माटे हे पुत्र! तुं ए स्त्रीओ 1. साथे मनुष्यसंबन्धी विशाल कामभोगोने भोगव अने त्यारपछी भुक्तभोगी थइ विषयनी उत्सुकता दूर थाय त्यारे अमारा कालगत थया पछी यावत् तुं दीक्षा लेजे. तए णं से जमाली खत्तियकुमारे अम्मापियरो एवं वयासी-तहावि णं तं अम्मताओ! जन्नं तुज्झे मम एवं 4aa वयह-इमाओ ते जाया विपुल कुलजावपवरहिसि, एवं खलु अम्मताओ! माणुस्सय कामभोगा असुई असा सया वंतासवा पित्तासवा खेलासवा सुक्कासवा सोणियासवा उच्चारपासवणखेलसिंघाणगवंतपित्तपूयसुक्कसोणियसमुन्भया अमणुन्नदुरूवमुत्तगृहयपुरीसपुना मयगंधुस्सासअसुभनिस्सासा उब्वेषणगा बीभत्था अप्पकालिया For Private and Personal Use Only
SR No.020923
Book TitleVyakhyapragnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages238
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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