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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir CS व्याख्या 10 उमेश Re // 898 // -% जाणg. 'तेओ यावत् चार पांच देवावासोनुं उल्लंघन करे अने त्यारपछी आगळ परनी शक्तिथी उल्लंघन करें त्यांमुधी जाणवू. [प्र.] हे भगवन् ! अल्पऋद्धिक-अल्पशक्तिकाळो देव मद्धिक-महाशक्तिवाळा देवनी बच्चे थइने जाय ? [उ.] हे गौतम! ए अर्थ योग्य नयी. (अर्थात् ते बचोवच थइने न जाय.) [10] हे भगवन् ! समर्द्धिक-समानशक्तिवाळो-देव समानशक्तिवाळा देवनी बच्चे थइने जाय ? [30] हे गौतम! ए अर्थ योग्य नथी. पण जो ते प्रमत्त (असावधान) होय तो तेनी वच्चे थईने जाय, [प्र०] हे भगवन् ! शुं ते देव सामेना देवने विमोह पमाडीने जइ शके, के विमोह पमाड्या सिवाय जडू शके: [उ०] हे गौतम! ते देव सामेना देवने विमोह पमाडीने जइ शके, पण विमोह पमाड्या सिवाय न जई शके. [50] हे भगवन् ! शु ते देव पहेला विमोह पमाडीने | पछी जाय के पहेला जइने पछी विमोह पमाडे ! [उ०) हे गौतम! ते देव पहेला विमोड पमाडीने पछी जाय, पण पहेला जइने पछी विमोड न पमाडे. महिड्डीए णं भंते! देवे अप्पड्डियस्स देवस्स मज्झमज्झेणं वीइवएजा ?, हंता बीइथएज्जा, सेणं भंते ! | किं विमोहित्ता पभू अविमोहेता पभू , गोयमा! विमोहेसावि पभू अविमोहेत्तात्रि पभू, से भंते ! किं पुधि विमोहेत्ता पच्छा वीइवइज्जा पुद्धि वीइवइत्ता पच्छा विमोहेज्जा, गोयमा! पुन्धि वा बिमोहेत्ता पच्छा वीइवएना पुटिव वीइवरजा पच्छा विमोहेजा। अप्पिड्डीए णं भंते! असुरकुमारे महड्डीयस्स असुरकुमारस्म मज्झमज्झेर्ण वीइवरजा!, णो इणडे समढे, एवं असुरकुमारेवि तिन्नि आलावगा भाणियब्वा जहा ओहिएणं देवेणं भाणेया, एवं जाव थणियकुमाराणं, वाणमंतरजोइसियवेमाणिएणं एवं चेव / अप्पड्डिए ण भंते ! देवे मह ---CESS % * + For Private and Personal Use Only
SR No.020923
Book TitleVyakhyapragnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages238
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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