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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabarth.org Acharya Shri Kalassagarsun yarmandie व्याख्या उपेशा 1601 16000 यागं पाउणित्ता अद्धमासियाए सलेहणाए तीसं भत्ताई अणसणाए छेदेति तीसं०२ तस्स ठाणस्स अणालोइय-17 पडिकंते कालमासे कालं किचा लंतए कप्पे जाव उववन्ने // (सूत्र० 389) // [प्र०] हे भगवन् ! ते किल्बिषिक देवो आयुष्यनो क्षय थवार्थी, भवनो क्षय थवाथी, स्थितिनो क्षय थवाथी, तरत ते देवलोकथी | च्यवीने क्या जाय-क्यां उत्पन्न थाय ? [उ०] हे गौतम ! ते किल्विषिक देवो नारक, तिर्यच, मनुष्य अने देवना चार के पांच भवो | करी, एटलो संसार भ्रमण करीने त्यारपछी सिद्ध थाय, बुद्ध थाय अने यावद् दुःखोनो नाश करे. अने केटलाक किल्विपिक देवो तो अनादि, अनंत अने दीर्घमार्गवाला चारगति संसाराटवीमां भम्या करे. [प्र.] हे भगवन् ! शुं जमालि नामे अनगार रसरहित आहार करतो, विरसाहार करतो, अंताहार करतो, प्रांतहार करतो, रूक्षाहार करतो, तुच्छाहार करतो, अरसजीवी, विरसजीवी, यावत् तुच्छजीवी, उपशांतजीवनवाळो, प्रशांतजीवनवाळो, पवित्र अने एकान्त जीवनवाळो हतो? [उ०] हे गौतम ! हा, जमालि नामे अनगार अरसाहारी, विरसाहारी यावद् पवित्रजीवनवाळो हतो. [प्र०] हे भगवन् ! जो जमालि नामे अनगार अरसाहारी, विरसाहारी अने यावद् पवित्र जीवनवाळो हतो तो हे भगवन् ! ते जमालि अनगार मरणसमये काल करीने लांतक देवलोकमां तेर सामरोपमनी स्थितिवाळा किल्बिषिक देवोमा किल्विपिक देवपणे केम उत्पन्न थयो ? [30] हे गौतम ! ते जमालि अनगार आचार्यनो अने उपाध्यायनो प्रत्यनीक हतो, तथा आचार्य अने उपाध्यायनो अयश करनार अवर्णवाद करनार हतो यावद ते (मिथ्या अभिनिवेश बडे पोताने, परने अने उभयने भ्रान्त करतो) दुर्बोध करतो, यावत् घणा वरस सुधी श्रमणपणाने पाळीने अर्धमासिक संलेखना बडे शरीरने कृश करीने त्रीश भक्तोने अनशन बडे पूरा करीने ते स्थानकने आलोच्या के प्रतिक्रम्या सिवाय काळसमये काळ करीने ॐॐ For Private and Personal Use Only
SR No.020923
Book TitleVyakhyapragnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages238
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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