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________________ Shri Mahawan Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsur Gyarmandir उद्देशा // 874 // छमस्थ होइने छमस्थ विहारथी विहरी रह्या छ: पण हुं तेम छमस्थ विहारथी विहरतो नथी. हुं तो उत्पन्न थयेला ज्ञान अने दर्शन माख्या-4 धारण करनारो अर्हन्, जिन अने केवली थइने केवलिविहारथी विचरु छु. त्यार पछी भगवंत गौतमे ते जमालि अनगारने आ प्रमाणे प्रचाप्तिः | कह्यु के-'हे जमालि! खरेखर ए प्रमाणे केवलिनुं ज्ञान के दर्शन पर्वतथी स्तंभथी के स्तूपथी अवृत थतुं नथी, तेम निवारित थतुं | 874 // नथी, हे जमालि! जो तुं उत्पन्न थयेला ज्ञान, दर्शनने धारण करनार अर्हन्, जिन अने केवली थइने केबलिविहारथी विचरे छे तो आ वे प्रश्नोनो उत्तर आप. [प्र०] हे जमालि!१ लोक शाश्वत ले के अशाश्वत छे ? हे जमालि! 2 जीव शाश्वत छे के अशाश्वत छे ? ज्यारे भगवंत गौतमे ते जमालि अनगारने पूर्व प्रमाणे पूछयु त्यारे ते शंकित अने कांक्षित थयो, यावत् कलुषितपरिणामवाळो थयो. ज्यारे ते (जमालि) भगवंत गौतमना प्रश्नोनो काइ पण उत्तर आपवा समर्थ न थयो त्यारे तेणे मौन धारण कयु. जमालीति समणे भगवं महावीरे जमालिं अणगारं एवं वयासी-अस्थि णं जमाली! मम बहवे अंतेवासी समणा निग्गंथा छउमत्था जे णं एयं वागरणं वागरित्तए जहा ण अहं नो चेवण एयप्पगारं भासं भासित्तए जहा णं तुम, सासए लोए जमाली! जन्न कयावि णासी णो कयावि ण भवति ण कदावि ण भविस्सइ भुवि च भवइय भविस्सइ य धुवे णितिए सासए अक्खए अब्बए अवढिए णिच्चे, असासए लोए जमालि ! जओ ओसप्पिणी भवित्ता उस्मप्पिणी भवह उस्सप्पिणी भवित्ता ओसप्पिणी भवइ,सासए जीवे जमालि ! जे न कयाइ णासि जाव णिच्चे असासए जीवे जमाली! जन्नं नेरइए भवित्ता तिरिक्खजोणिए भवइ तिरिक्खजोणिए भवित्ता मणुस्से भवइ मणुस्से भवित्ता देवे भवइ, For Private and Personal Use Only
SR No.020923
Book TitleVyakhyapragnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages238
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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