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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 9 शतके उरेशान // 6 // com काफ-5 चंपा नयरी जेणेव पुन्नभद्दे चेहए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ२ समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते ठिच्चा समणं भगवं महावीरं एवं बयासी-जहा णं देवाणुप्पियाणं वहवे अंतेवासी समणा निग्गंधा छउमत्था भवेत्ता छउमस्थावक्कमणणं अवकंता णो खस्लु अहंतहा छउमत्थे भवित्ता छउमत्थावकमणणं अवकमिए, अहन्नं उप्पन्नणाणदसणधरे अरहा जिणे केवली भवित्ता केवलि अवकमणेणं अवकमिए, सए णं भगवं गोयमे जमालिं अणगारं एवं वयासी-णो खलु जमाली ! केवलिस्स णाणे वा दसण वा सेलसि वा थंभंसि वा थूभंसि वा आवरिजइ वा णिवारिजह वा, जइ णं तुम जमाली! उप्पन्नणाणदसणधरे अरहा जिणे केवली भवित्ता केवलिअवक्कमणेणं अवकते तो इमाइं दो वागरणाई वागरेहि-सासए लोए जमाली! असासए लोए जमाली!, सासए जीवे जमाली! असासए जीवे जमाली?, तए णं से जमाली अणगारे भगवया गोयमेणं एवं वुत्त समाणे संकिए कंखिए जाब कलुससमावन्ने जाए यावि होत्था, णो संचाएति भगवओ गोयमस्स किंचिति पमोकवमाइक्खित्तए तुसिणीए सचिट्ठइ, | त्यार पछी कोइ एक दिवसे ते जमालि अनगार पूर्वोक्त रोगना दुःखथी विमुक्त थयो, हृष्ट, रोगरहित अने बलवान् शरीरवाळो थियो. अने श्रावस्ती नगरीथी अने कोष्ठक चैत्यथी बहार नीकळी अनुक्रमे विचरता ग्रामानुग्राम विहार करता ज्यां चंपानगरी छे, ज्यां पूर्णभद्र चैत्य छ, अने ज्या श्रमण भगवंत महावीर छे त्यां आवे छे. आवीने श्रमण भगवंत महावीरनी अत्यन्त दूर नहि तेम अत्यन्त पासे नहि, तेम उभा रहीने श्रमण भगवंत महावीरने आ प्रमाणे कयु-'जेम देवानुप्रियना घणा शिष्यो श्रमण निग्रन्थो For Private and Personal Use Only
SR No.020923
Book TitleVyakhyapragnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages238
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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