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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir बाल्या- प्रातिः 465 // उभी राखीने ते शिविका थकी नीचे उतरे छे. त्यारपछी ते जमालि क्षत्रियकुमारने आगळ करी तेना माता-पिता ज्यां श्रमण भग वान महावीर छे त्यां आवे छे. त्यां आवीने श्रमण भगवंत महावीरने प्रण वार प्रदक्षिणा करी यावत् नमी ते ओ आ प्रमाणे बोल्या शतके के-हे भगवान् / ए प्रमाणे खरेखर आ जमालि क्षत्रियकुमार अमारे एक इष्ट अने प्रिय पुत्र के, जेर्नु नाम श्रवण पण दुर्लभ छे, उषा दा तो दर्शन दुर्लभ होय तेमां शुं कहे, ? जेम कोइ एक कमळ, पद्म, यावत् सहस्रपत्र कादवमा उत्पन्न थाय, अने पाणीमां वधे, तोपण[XI8n ते पंकनी रजथी तेम जलना कणथी लेपातुं नथी; ए प्रमाणे आ जमालि क्षत्रियकुमार पण कामथकी उत्पन्न थयो के अने भोगोथी वृद्धि पाम्यो छे, तो पण ते कामरजथी अने भोगरजथी लेपातो नथी, तेमज मित्र, ज्ञाति, पोताना स्वजन, संबन्धी अने परिजनथी पण लेपातो नथी. हे देवानुप्रिय ! आ जमालि क्षत्रियकुमार संसारना भयथी उद्विग्न थयो, जन्म मरणथी भयभीत थयो छ, अने देवानुप्रिय पवा आपनी पासे मुंड-दीक्षित थइने अगारवासथी अनगारिकपणाने स्वीकारवाने इच्छे . तो देवानुमियने अमे आ शिष्यरूपी मिक्षा आपीए छीए. तो हे देवानुप्रिय ! आप आ शिष्यरूप भिक्षानो स्वीकार करों'. तए णं समं० 3 तं नमालिं खत्तियकुमार एवं वयासी-अहासुहं देवाणुप्पिया। मा पडिबंध / तए णं से जमाली खत्तियकुमारे समणेणं भगवया महावीरेणं एवं बुत्ते समाणे हद्दतुढे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव नमंसित्ता उत्तरपुरच्छिमं दिसीभार्ग अवक्कमइ 2 सयमेव आभरणमल्लालंकारं ओमुयह, ततेणं से जमालिस्स खत्तियकुमारस्समाया हंसलक्खणेणं पडसाडएणं आभरणमल्लालंकारं पहिच्छति पडिच्छित्ता हारवारिजाव विणिम्मुयमाणा वि० 2 जमालि खत्तियकुमारं एवं वयासी-घडियवं जाया! जइयव्वं जाया! 2-442 For Private and Personal Use Only
SR No.020923
Book TitleVyakhyapragnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages238
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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