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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir R एक तरफ एक असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ वे अनन्तप्रदेशिक स्कन्धो होय छे. जो तेना चार भाग करवामां आवे के प्राप्ति तो एक तरफ त्रण परमाणुओ अने एक तरफ एक अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय के.ए प्रमाणे चतुष्कसंयोग, याक्द्-संख्यातसंयोग उडेकर 1.2 // कडेवो. एबधा संयोगो असंख्यातनी पेठे अनन्तने पण कडेवा; परन्तु एक 'अनन्त' शब्द अधिक कहेचो; यावद्-अथवा एक तरफ // 1.12 // संख्याता संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध अने एकतरफ एक अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ संरूपाता असंख्येयप्रदेशिक स्कन्धो अने एक तरफ अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय . अथवा संख्याता अनंतप्रदेशिक स्कन्धो होय के. जो तेना असंख्याता विभाग करीए तो एक तरफ असंख्यात परमाणुपुद्गलो अने एक तरफ एक अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ असंख्यात द्विप्रदेशिक स्कन्धो अने एक तरफ एक अनन्त प्रदेशिक स्कंध होय छे, यावद्-अथवा एक तरफ असंख्याता संख्यातप्रदेशिक स्कन्धो अने एक तरफ एक अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय . अथवा एक तरफ असंख्याता असंख्यातप्रदेशिक स्कन्धो | अने एक तरफ अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय जे. अथवा असंख्याता अनन्तप्रदेशिक स्कन्धो होय छे. जो तेना अनन्त विभाग करII वामां आवे तो अनन्त परमाणपदलो थाय छे. / / 445 // एएमि गं भंते ! परमाणुपोग्गलाणं साहणणाभेदाणुवाएणं अणताणता पोग्गलपरियट्टा समणुगंतब्बा भवंतीति मकवाया?, हंता गोयमा! एएसिणं परमाणुपोग्गलाणं साहणणा जाव मकवाया // कहबिहे ण भंते! पोग्गलपरियहे पण्णते?, गोयमा! सत्तविहा पो. परि पणत्ता, तंजहा-ओरालियपो. परि० बेउब्विय. तेयापो० कम्मापो० मणपो० परियट्टे वइपोग्गलपरियट्टे आणापाणुपोग्गलपरिअट्टे / नेरझ्याण भंते ! कतिविहे | Ec AAT For Private and Personal Use Only
SR No.020923
Book TitleVyakhyapragnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages238
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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