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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir माला उद्देश // 10 // 1 // ABESEX पग संखेजा असंखेजपएमिया खंधा एग. अणंतपएसिए संधे भवति अहवा मंखिजा अणंतपएसिया खंधा भवंति, असंखेजहा कन्जमाणे एगयओ असंखज्जा परमाणु एग. अणंतपएमिए खंधे भवद अहवा एंगयओ श तक अमंखिजा दुपएसिया खंधा एग. अणंतपएसिए भवनि जाव अहवा एग० असंखेजा मग्विजपएमिया एग०1४ 1-110 अणंतपएसिए भवति अहवा एग. असंग्विजा असंखिजपएसिया खंधा एग. अणंतपएसिा भवनि अहवा अमंखवा अणंतपएसिया खंधा भवंति अणंतहा कन्जमाणे अणंता परमाणुपोग्गला भवंति // (सूत्रं 445) // हे भगवन् ! अनन्त परमाणुपुद्गलो एकठा थाय अने एकठा थया पछी तेनु शु थाय ? उ.] हे गौतम! तेनो अन-131 न्तप्रदेशात्मक स्कन्ध थाय. जो तेना विभाग थाय तो , त्रण, यावत् दश, संग्ख्यात, असंख्यात अने अनन्त विभाग थाय. बेर | विभाग करवामां आवे तो एक तरफ परमाणुपुद्गल अने एक तरफ अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय हे. यावद्-अथवा वे अनन्तप्रदेशिक स्कन्धो होय छे. जो तेना प्रण विभाग करवामां आवे तो एक तरफ वे परमाणुपुरलो अने एक तरफ अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय के. अथवा एकतरफ एक परमाणु, एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ एक अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. यावत्| अथवा एक तरफ एक परमाणुपुद्गल, एक तरफ असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ एक परमाणु, अने एक तरफ रेअनन्तप्रदेशिक स्कन्धो होय . अथवा एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कन्ध अने एक | | तरफ वे अनन्तप्रदेशिक स्कन्धो होय . ए प्रमाणे यावत्-अथवा एक तरफ एक दशप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ वे अनन्तप्रदेशिक स्कन्धो होय छे. अथवा एक तरफ एक संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ अनन्त प्रदेशिक स्कन्धो होय छे. अथवा + + + + For Private and Personal Use Only
SR No.020923
Book TitleVyakhyapragnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages238
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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