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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir १२शतके किंबंधइ किं पकरेति किं चिणाति किं उचिणाति ?, संखा! कोहवसद्दे णं जीवे आउयवजाओ सत्त कम्मपगमस्या- डीओ सिदिलबंधणबद्धाओ एवं जहा पढमसए असंवुडस्स अणगारस्म जाच अणुपरियहह / माणवसट्टे णं भंते! प्रयास जीवे एवं चेव, एवं मायावसद्देवि, एवं लोभवसद्देवि जाव अणुपरियहइ / तए ण ते समणोवासगा समणस्स भग P1029 // // 1029 // ओ महावीरस्स अतियं एयमढे सोचा निसम्म भीया तत्था तसिया संसारभउम्विग्गा ममणं भगवं महावीरं वं. नमं० 2 जेणेव संखे समणोवासए तेणेव उवा०२ संखं समणोवासगं 0 न० २त्ता पयमढें संमं विणएणं भुजो रखामेति ।नए णं ते समणोबासगा सेस जहा आलभियाए जाव पडिगया, भंतेत्ति भगवं गोयमे समणं भगवं लामहावीरं वंदह नमंसह 2 एवं वयासी-पभू णं भंते ! संखे समणोवासए देवाणुप्पियाणं अंतियं सेसं जहा इसि भरपुत्तस्स जाव अंतं काहेति / सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति जाब विहर (सूत्रं 440) // 12-1 // / [प्र०] त्यार बाद ते शंख श्रमणोपासके श्रमण भगवंत महावीरने बांदी, नमी आ प्रमाणे कधु-हे भगवन् ! 'क्रोधने वश होवाथी हैपीडित थयेलो जीव शंगांचे, शंकरे, शेनो चय करे अने शेनो उपचय करे ? [उ. हे शंख क्रोधने व यवायी पीडित थयेलो जीव आयुष सिवायनी सात कर्मप्रकृतिओ शिथिल बन्धनथी बांधेली होय तो कठिन बन्धनवाळी करे-इत्यादि सर्व प्रथम शतकमां कोला संवररहित अनगारनी पेठे जाणवू, यावत् ते [संबररहित साधु ] संसारमा ममे छे. [प्र०] हे भगवन् ! मानने वश थवाथी | पीडित थयेलो जीव बांधे-त्यादि प्रश्न. [उ.] पूर्वे कसा प्रमाणे जाणवू, अने एव प्रमाणे मायाने वश यवायी पीडित श्येला अने लोभने पशवायी पीडित भयेला जीव संबन्धे पण जाणतु यावत् ते संसारमा ममे .त्यार माद ने श्रमणोपासको श्रमण भगवंत महावीर पासेथी ए. For Private and Personal Use Only
SR No.020923
Book TitleVyakhyapragnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages238
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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