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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir शतक 12. ( उद्देशक 1 लो.) माख्या |१२शतके दा संखे 1 जयंति 2 पुढवि 3 पोग्गल 4 अइवाय 5 राहु 6 लोगे य 7 / नागे य 8 देव 9 आया 10 बारमम-18 उदेश सए दसुद्देसा // 1 // 1015 // [उद्देशक संग्रह-] 1 शंख, 2 जयंती, 3 पृथिवी, 4 पुद्गल, 5 अतिपात 6 राहु, 7 लोक, 8 नाग, 9 देव अने 10 आत्माFI विषयो संबन्धे दश उद्देशको बारमा शतकमां कहेवामां आवशे... तेणं कालेणं 2 मावस्थीनाम नगरी होत्था बन्नओ, कोहए चेइए वन्नओ, तत्थ णं मावधीप नगरीए / बहवे संखप्पामोक्वा समणोवामगा परिवसंति अड्डा जाव अपरिभूया अभिगयजीवाजीवा जाव विह 12 रंति, तस्स णं संखम्म समणोवासगस्स उप्पला नाम भारिया होत्था सुकुमाल जाव सुरूवा समणोवासिया अ-18 भिगयजीवा 2 जाव विहरह, नत्थ णं सावत्थीए नगरीए पोक्वलीनाम समणोवासए परिवसई अड्डे अभिगयजाब बिहरह, तेणं कालेणं 2 सामी समोमढे परिसा निग्गया जाब पज्जुवा०, तए णं ते समणोवासगा इमीसे जहा आलभियाए जाच पज्जुवासह, तए णं समणे भगवं महावीरे तेसिं समणोवासगाण तीसे य महति० धम्मकहा जाव परिसा पडिगया, तए ण ते समणोवासगा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्म सोचा | निसम्म हडतुह० समण भ० म०० नवन. पसिणाई पुच्छति प० अट्ठाई परियादियंति अ०२ उड्डाए उठेति For Private and Personal Use Only
SR No.020923
Book TitleVyakhyapragnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages238
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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