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________________ Shri ahova Aradhana Kendra Acharya Sh Kalassagarsun Gyarmandie 459 प्राप्तिः ज्यां तापसोनुं यावद् आश्रम के त्यां आवे छे, आवीने उपकरण वगेरेने मूके छे, अने हस्तिनापुर नगरमा श्रृंगाटक, त्रिक, यावद् | राजमार्गोमा घणा माणसोने एम कड़े छे, यावद् एम प्ररूपे छे के, 'हे देवानुप्रियो ! मने अतिशयवाळशान अने दर्शन उत्पन्न थाले छे, अने आ लोकमा ए प्रमाणे सात द्वीपो अने सात समुद्रो छ,' त्यास्वाद ते शिवराजा पासेथी ए प्रकारचं वचन सांभळी, अवधारी|Bा उद्देशार हस्तिनापुर नगरमा श्रृंगाटक, त्रिक, यवद् राजमार्गोमां घणा माणसो परस्पर एम कहे छे-यावद् एम प्ररूपे छे-हे देवानुप्रियो || // 953 // शिवराजर्षि आ प्रमाणे कहे छे-यावत् प्ररूपे छे के हे देवानुप्रियो ! मने अतिशयवाल ज्ञान अन दशन उत्पन्न थयुं छे, यावत् एर प्रमाणे आ लोकमां सात द्वीप अने सात समुद्रो छे, त्यार पछी नथी, ते एम केवी. रीते होय? तेणं कालेणं तेणं समएण सामी समोसढे परिसा जाव पडिगया / तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेडे अंतेवासी जहा वितियसए नियंदुहेसए जाव अडमाणे बहुजणसई निमामेड़ बहुजणो अन्नमन्नस्स एवं आइक्वह एवं जाव परूबेह-एवं खलु देवाणुप्पिया! सिवे रापरिसी एवं आहवह जाव परूबेहअस्थि णं देवाणुप्पिया! तं चेव जाव वोच्छिन्ना दीवाय समुद्दा य, से कहमेयं मन्ने एवंी, तप णं भगवं गोयमे बहुजणस्स अंतियं एयमढे सोचा निसम्म जाव सड्ढे जहा नियंदुद्देसए जाव तेण परं वोच्छिन्ना दीवा य समुद्दा य, से कहमेयं भंते ! एवं 1, गोयमादि समणे भगवं महावीरे भगवं गोयम एवं बयासी-जन्नं गोयमा ! से बहुजणे अन्नमनस्स एवमातिक्खहतं चेव सब्वं भाणियव्वं जाव भंडनिकखेवं करेति हस्थिणापुरे नगरे सिंघाडग०२ चेव जाव वोच्छिन्ना दीवा य समुद्दा य, ताणं तस्स सिक्स्स रायरिसिस्स अंतिए पयमटुं सोचा निसम्म तं चेव + For Private and Personal Use Only
SR No.020923
Book TitleVyakhyapragnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages238
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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