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________________ Shri Mahawan Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmander ११शतके उद्देशान // 952 // तेणेव उवागच्छह 2 सुबहुं लोहीलोहकडाहकडच्छुयं जाव भंडगं किदिणसंकाइयं च गेण्हह 2 जेणेव हस्थिणा | पुरे नगरे जेणेव नायसाबसहे तेणेव उबागच्छद उवा०२ भंडनिक्खेवं करेह 2 हथिणापुरे नगरे सिंघाडगतिगव्याख्या प्राप्तिः जावपहेसु बहुजणस्स एचमाइक्वइ जाव एवं परूवेह-अस्थि णं देवाणुप्पिया! ममं अतिसेसे नाणदमणे समु 952 // प्पन्न, एवं स्वलु अस्सि लोए जाब दीवा य ममुद्दा य, तए णं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स अंतियं एयमढे सोचा | निमम्म हस्थिणापुरे नगरे मिंघाडगतिगजाब पहेसु बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खड़ जाब परूवेइ-गवं खलु लदेवाणुप्पिया! सिवे रायरिसी एवं आइक्वइ जाव परूवेह-अस्थि ण देवाणुप्पिया! ममं अतिसेसे नाणदसणे PIजाव सेण परं चोच्छिन्ना दीवा य समुद्दा य, से कहमेयं मन्न एवं / | एप्रमाणे निरंतर छट्ठ छहना तप करवाधी दिक्चकवाल तप करता, यावत् आतापना लेता ते शिवराजर्षिने प्रकृतिनी भद्रता &aa अने यावद् विनीतताथी अन्य कोई दिवसे तेना आवरणभूत कमोना क्षयोपशम थवाथी ईहा, अपोह, मार्गणा अने गवेषण करता विभंग नामे ज्ञान उत्पम थयु. पळी ते उत्पन्न थयेला ते विभंगज्ञान वडे आ लोकमां सात द्वीपो अने सात समुद्रो जुए डे, ते पछी आगळ जाणता नथी, के जोता नथी. त्यारवाद ते शिवराजर्षिने आ आवा प्रकारनो अध्यवसाय उत्पन्न थयो के, 'मने अतिशयवाछु ज्ञान अने द.न उत्पन्न थयु छ, अने ए प्रमाणे पा लोकमां सात द्वीप अने सात समुद्रो के, अने त्यारपछी द्वीपो अने समुद्रो नथीएम विचारे ने, विचारीने आतापना भूमिथी नीचे उतरे दहे, अने वल्कलना बस्त्रो पहेरी ज्यां पोतानी झुपडी छे त्यां आवी अनेक |प्रकारना लोढी, लोढाना कडायां अने कडछा यावद् वीजा उपकरणो अने काबढने ग्रहण करें छे, अने ज्यां हस्तिनापुर नगर छ भने 6 For Private and Personal Use Only
SR No.020923
Book TitleVyakhyapragnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages238
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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