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________________ Shri Maa Jan Aradhana Kendra Acharya Se Klasagarsun Gyarmandir प्राप्तिः 1948 // जाणवू, यावत् ते दिशाप्रोक्षक तापसोनी पासे दीक्षित थह दिशाप्रोक्षकतापसरूपे प्रवज्या ग्रहण करी प्रवजित थइने ते आ प्रकारनो अभिग्रह धारण करे छ-'मारे यावज्जीव निरंतर छठु छट्ठनो तप करको कल्पे'-इत्यादि पूर्ववत् अभिग्रह ग्रहण करीने प्रथम छट्ठ 3 तपनो स्वीकार करी विहरे छे. का उद्देशा नए णं से मिवेरायरिसी पढमट्ठक्वमणपारणगसि आयावणभूमीओ पञ्चोकहइ आयावणभूमिओ पनोरुहित्ता वागलबत्थनियत्थे जेणेव मा उडा तेणेव उवागच्छद तेणेव उवागच्छित्ता किढिणसंकाइयगं गिण्हइ गिणिहत्ता पुरच्छिम दिस पोक्खेह पुरच्छिमाए दिसाए सोमे महाराया पत्याणे पत्थियं अभिरग्वउ मिवं रायरिसिं अभिः 2, जाणि य तस्य कदाणि य मूलाणि यतयाणि य पत्साणि य पुष्पाणि च फलाणि य बीयाणि य हरियाणि य* ताणि अणुजाणउसि कह धुरच्छिमंदिसं पसरति पुर०२ जाणि य तत्थ कंदाणि य जाव हरियाणि यताई गेण्ड) 2 किढिणसंकाइयं भरेइ कढि०१ दम्मे य कुसे य समिहाओ य पत्तामोडं च गेण्डेड 2 जेणेव सए उडए तेणेव | उवागच्छह 2 किढिणसंकाइयगं ठवेइ किढि०२ वेदिं यड्डेड 2 उबलेवणसंमजणं करेइ उ०२ दम्भमगम्भकलसाह. स्थगए जेणेव गंगा महानदी तेणेच उवागच्छह गंगामहानदी ओगाहेति जलमजणं करेड 2 जलकीड करेइहाजलाभिसेयं करेति 2 आयंते चोक्खे परमसुहभूण देवयपितिकयकले दम्भसगम्भकलसाहत्थगए गंगाओ म. | नईओ पच्चुत्तरइ 2 जेणेव मग उडए तेणेव उवागच्छद तेणेव उवागच्छित्ता दन्भेहि य कुसेहि य वालुयापहि | य वेति रपति वेति पत्ता सरगणं अरणिं महेति सर०२ अग्गि पाडेति अग्गि मंधुकह 2 ममिहाकट्ठाई %*%ACAN Re% For Private and Personal Use Only
SR No.020923
Book TitleVyakhyapragnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages238
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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