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________________ Shri ahova Aradhana Kendra Acharya Shri Kailasagarsun Gyarmandie व्याख्याप्राप्तिः // 947 // SAN ११शतके उद्देशा९ // 947 // तओ पच्छा पहाए जाब सरीरे भोयणवेलाए भोयणमंडवंसि सुहासणवरगप तेणं मित्तणातिनियगसयण जाव परिजणेणं राहि य खत्तिएहि य सद्धिं विपुलं असणपाणखाइमसाइम एवं जहा तामली जाव सकारेति संमाणेति सकारत्ता संमाणेत्ता त मित्तणाति जाव परिजण रायागो य वत्तिए य सिबभई च रायाणं आपुच्छइ आ. पुच्छित्ता सुबहुं लोहोलोहकडाहकटुच्छुयं जाव भंग गहाय जे इमे गंगाकूलगा वाणपत्था तावसा भवंति तं चेच जाय तसिं अंतिय मुंडे भवित्ता दिसापोविन्वयतावसत्ताए पवइए. पवाऽविय ण ममाणे अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ-कप्पह मे जावजीवाए छटुंतं चेव जाव अभिग्गई अभिगिण्हइ 2 पदम छट्टकम्यमण उपसंपजिसाणं विहरह। त्यारपछी ते शिवराजा अन्य कोई दिवसे प्रशस्त तिथि, करण, दिवस अने नक्षत्रना योगमां विपुल अशन, पान ग्वादिम अने स्वादिम वस्तुओने तैयार करावे . तैयार करावी मित्र, ज्ञाति, यावत् पोताना परिजनने, राजाओने अने क्षत्रियोने आमन्त्रण करे के, आमन्त्रण करी त्यार वाद स्नान करी यावत् शरीरने अलंकृत करी भोजनवेलाए भोजनमंडपमा उत्तम मुखासन उपर वेसी मित्र, ज्ञाति अने पोताना वजन यावत् परिजन साधे तथा राजा अने क्षत्रियो साथे विपुल अशन, पान, खादिम अने स्वादिम भोजन करी तामलितापसनी पेठे यावत् ते शिवराजा बधाओनो सत्कार करे छ, सन्मान करे हे. सत्कार अने सन्मान करीने मित्र, ज्ञाति, पोताना वजन, यावत् परिजननी तथा राजाओ, क्षत्रियो अने शिवभद्र राजानी रजा मागे छे. रजा मागीने अनेक प्रकारना लोढी, | लोढाना कडायां, कडछा यावत् तापसना उचित उपकरणो लइने गंगान कांठे जे आ वानप्रस्थ तापसो रहे छे-इत्यादि सर्व पूर्ववत् RECE%E5%94% CHAR For Private and Personal Use Only
SR No.020923
Book TitleVyakhyapragnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages238
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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