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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नागेश भट्ट : जीवन-वृत्त एवं कृतियाँ भट्टोजि दीक्षित तथा कौण्ड भट्ट जैसे, व्याकरणदर्शन के अद्भूत व्याख्याताओं एवं शास्त्र-मर्मज्ञों की परम्परा में ही, इस निकाय के उद्भट विद्वान् तथा पातंजल महाभाष्य आदि के अध्ययन में कृतभूरिपरिश्रम' नागेश भट्ट का प्रादुर्भाव हुआ । इस विद्वान् ने संस्कृत वाङ्मय के अनेक महत्त्वपूर्ण अंगों, दिशाओं तथा क्षेत्रों को और विशेषरूप से व्याकरण-दर्शन को अपने अध्ययन का विषय बनाया, उसे अपनी विविध गम्भीर कृतियों से आलोकित, अलंकत एवं समृद्ध किया। इनकी वैयाकरणसिद्धान्तमंजूषा (वैसिम०) तथा उसका लघु रूप वैयाकरणसिद्धान्तलघुमंजूषा (वैसिलम०) ये दोनों ही ग्रंथ व्याकरण-दर्शन के प्रमुख सिद्धान्तों की बहुमूल्य मंजूषाएं हैं, जिनमें इस दर्शन की सम्पूर्ण रत्न-राशि अपनी अद्भुत गरिमा, असाधारण विच्छित्ति एवं अनुपम प्रोजस्विता के साथ सुरक्षित है । इन ग्रन्थों में व्याकरण-दर्शन के सिद्धान्तों का-पातंजल महाभाष्य, भृर्तृहरिकृत वाक्यपदीय तथा उसकी स्वोपज्ञ टीका, पुण्यराज और हेलाराज कृत वाक्यपदीय सम्बन्धी टीकाओं तथा अन्य पुष्कल प्रामाणिक सामग्रियों के आधार पर सम्यक विश्लेषण, विस्तृत विवेचन और परीक्षण करते हुए --विश्वनीय विस्तृत विवरण तो प्रस्तुत किया ही गया साथ ही अन्य दार्शनिक सम्प्रदायों के विद्वानों के द्वारा व्याकरणदर्शन के सम्बन्ध में किए गए आक्षेपों तथा प्रश्नों का यथोचित उत्तर भी दिया गया है। नागेश भट्ट द्वारा रचित महाभाष्यप्रदीपोद्द्योत (पातंजल महाभाष्य की कैय्यट-कृत प्रदीप टीका की व्याख्या), शब्देन्दुशेखर (बृहत् तथा लघु संस्करण) परिभाषेन्दुशेखर आदि भी व्याकरण शास्त्र के प्रामाणिक ग्रंथ माने जाते हैं। समय-नागेश भट्ट के प्रमुख ग्रंथ वैयाकरणसिद्धान्तमंजूषा के (उज्जैन में संगृहीत) हस्तलेख का समय १७०८ ई० है तथा महाभाष्यप्रदीपोद्योत के (ऐशियाटिक सोसाइटी बंगाल के पुस्तकालय में संगृहीत) हस्तलेख का समय १७३८ ई० है। इन दोनों ग्रंथों में एक दूसरे का निर्देश मिलता है। इसलिए यह सम्भावना है कि १७०८ से पूर्व इन दोनों की रचना हो चुकी होगी। ये दोनों ही ग्रंथ नागेशभट्ट की प्रौढ़ प्रतिभा से समुद्भूत हैं। अतः यह भी मानना उचित प्रतीत होता है कि इस समय लेखक की आयु कम से कम ३० वर्ष तो होगी ही। इस आधार पर इनका जन्मकाल ई० सन् १६७० अथवा १६८० माना गया है। १. द्र०-लघुशब्देन्दुशेखर का प्रारम्भिक श्लोक; पातंजले महाभाष्ये कतभरिपरिश्रमः । २. पी० के० गोडे-स्टडीम इन इण्डियन लिटरेरी हिस्टरी, ना० ३, पृ. २१८-१६ । For Private and Personal Use Only
SR No.020919
Book TitleVyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagesh Bhatt, Kapildev Shastri
PublisherKurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
Publication Year1975
Total Pages518
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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