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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निपातार्थ-निर्णय १८६ देने योग्य है कि "भूवादयो धातवः” (पा० १.३.१) सूत्र के महाभाष्य में 'पाठ' अथवा प्रवचन को भी धातुओं की धातुता में एक विशिष्ट आधार माना गया है। दूसरा हेतु यह है कि 'निपात' या 'उपसर्ग' सहित समुदाय की यदि धातु संज्ञा मान ली गयी तो अनेक स्थानों पर दोष आयेगा। जैसे-इन विशिष्ट समुदायों से पूर्व 'लुङ् आदि लकारों में 'अट्', 'पाट्', आदि आगमों को रखना होगा, जब कि वे अभीष्ट हैं 'निपात' तथा 'उपसर्ग' के बाद । इसके अतिरिक्त 'लिट्' आदि लकारों में भी दोष आयेगा। वहाँ धातु को द्वित्व करते समय 'उपसर्ग' आदि के आधार पर 'अनजादि' धातुएं भी 'प्रजादि' हो जायेंगी जिससे अनभीष्ट 'द्वितीय एकाच' अथवा 'प्रथम एकाच' को "अजादेद्वितीयस्य' (पा० ६.१.१) तथा “एकाचो द्वे प्रथमस्य' (पा. ६.१.२) के अनुसार 'द्वित्व' करना पड़ेगा। इस प्रकार अनेक अव्यवस्थाओं के कारण 'निपात' या 'उपसर्ग' से युक्त धातु की धातु संज्ञा नहीं मानी जा सकती। ["उपसर्ग' अर्थ के द्योतक हैं तथा 'निपात' अर्थ के वाचक"--नैयायिकों के इस मत का खण्डन] यत्तु ताकिका:-उपसर्गाणां द्योतकत्वं तदितर-निपातानां वाचकत्वम्, “साक्षात्प्रत्यक्षतुल्ययोः" इति कोशात् (अमरकोश ३।२५२)। 'नमः' पदेन 'देवाय नमः' इत्यादौ नमस्कारार्थस्य, दानावसरे 'गवे नमः' इत्यत्र पूजार्थस्य' प्रसिद्धत्वाच्च। 'सकर्मकत्वम्' च स्व-स्व-समभिव्याहृत-निपातान्यतरार्थ-फल-व्यधिकरण-व्यापार-वाचकत्वम् । 'कर्मत्वम्' च स्व-स्व-समभिव्याहृत-निपातान्यतरार्थफल-शालित्वम् । तन्न । वैषम्ये बीजाभावात् । 'अनुभूयते' इत्यनेन 'साक्षाक्रियते' इत्यस्य समत्वात् । “नामार्थ-धात्वर्थयोर्भेदेन साक्षाद् अन्वयाभावात्", नामार्थधात्वर्थयोरन्वयस्यैवासम्भवात् । निपातार्थफलाश्रयत्वेऽपि धात्वर्थान्वयं विना कर्मत्वानुपपत्तेश्च । १. ह०, वंमि०-नमस्कारार्थत्वस्य । २. ह०, वंमि-पूजार्थत्वस्य । ३. तुलना करो-वैभूसा० पृ० ३७३; स्व-स्व-युक्त-निपातान्यतरार्थ-फल-व्यधिकरण-व्यापार-वाचित्थं सकर्मकत्वम् अपि सुवचम् । For Private and Personal Use Only
SR No.020919
Book TitleVyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagesh Bhatt, Kapildev Shastri
PublisherKurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
Publication Year1975
Total Pages518
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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