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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धात्वर्थ-निर्णय १७३ प्रत्ययार्थस्यैव प्राधान्यम्" इत्युत्सर्गः । 'पाचकः,' 'प्रोपगवः' इत्युदाहरणम् । 'पाकक्रियाश्रयः', 'उपगुसम्बन्ध्यभिन्नापत्यम्' इति प्रत्ययार्थस्य प्राधान्यं तयोरर्थे । तत्रापि प्रत्यय-वाच्यस्यैव अर्थस्य प्राधान्यम् । द्योत्यस्य तु अप्राधान्यमेव । यथा--'अजा' इत्यत्र 'स्त्रीत्वविशिष्टपशुविशेषः' इति बोधः । तस्य उत्सर्गस्य "भावप्रधानम् आख्यातम् । सत्त्वप्रधानानि नामानि" (नि० १.१) इति यास्कवचनम् अपवादः। तेन पाख्याते तिङन्ते क्रियाया एव प्राधान्यं शाब्दबोधे, न प्रत्ययार्थस्य, इति बोध्यम् । यत्तु-'याख्यात'-पदेन तिङ्मात्रग्रहणाद् ‘भावप्रधानम्" इत्यत्र षष्ठीतत्पुरुषाश्रयणात् प्रत्ययार्थप्राधान्यमेव फलति इति--तन्न । "पाख्यातम् प्राख्यातेन क्रियासातत्ये' इति सूत्रे 'पाख्यात'-पदेन तिङन्तस्यैव ग्रहणात् । उत्सर्गेणैव निर्वाहे यास्ककृतापवादवचनवैयर्थ्यापत्तश्च । तस्माद् "भावप्रधानम्" इत्यत्र बहुव्रीहिः। 'पाख्यात'-पदेन तिङन्तस्यैव ग्रहणम्--इत्यलम् । 'पाख्यातार्थ में धातु का अर्थ विशेषण होता है' इस (सिद्धान्त) का खण्डन करना शेष है। "प्रकृत्यर्थ तथा प्रत्ययार्थ के एक साथ उपस्थित होने पर प्रत्ययार्थ की प्रधानता होती है" यह (एक) सामान्य नियम है । (इसके) 'पाचकः' (पकाने वाला), 'औपगवः, (उपगु का पुत्र) ये उदाहरण हैं । 'पाक' क्रिया का आश्रय' (पकाने वाला) तथा 'उपगु से सम्बद्ध (उसका) अभिन्न पुत्र' इस रूप में उन दोनों (शब्दों) के अर्थ में प्रत्ययार्थ की प्रधानता है। उस (सामान्य नियम) में भी प्रत्यय के वाच्य अर्थ की ही प्रधानता होती है-प्रत्यय से द्योत्य अर्थ तो गौण ही रहता है। जैसे–'अजा' (बकरी) इस (शब्द) से 'स्त्रीत्वयुक्त पशु विशेष' यह ज्ञान होता है। उस सामान्य-नियम का "भावप्रधानम् आख्यातं सत्त्वप्रधानानि नामानि" ('पाख्यात' क्रियाप्रधान होता है तथा 'नाम' द्रव्य-प्रधान) यह यास्क का कथन विशेष नियम है । इसलिये (इस विशेष नियम के कारण) 'आख्यात' (तिङन्त) में शाब्दबोध के समय क्रिया की प्रधानता होती है, प्रत्यय के अर्थ ('कर्ता' तथा 'कर्म)' की नहीं, यह जानना चाहिये। १. वंमि, तथा ह० में इसके बाद 'आख्यातम्' अधिक है। For Private and Personal Use Only
SR No.020919
Book TitleVyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagesh Bhatt, Kapildev Shastri
PublisherKurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
Publication Year1975
Total Pages518
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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