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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org व्यंजना-निरूपण के बिना भी व्यंग्य अर्थ की प्रतीति होती ही है । इसीलिये मम्मट ने 'अभिधामूला व्यंजना' के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए कहा : श्रनेकार्थस्य शब्दस्य वाचकत्वे नियन्त्रिते । संयोगाद्यं वाच्यार्थ - धीद् व्यापृतिर् अंजनम् ।। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( काव्यप्रकाश २.१६ ) श्रर्थात् 'संयोग' 'विप्रयोग' आदि, जिनकी चर्चा ऊपर 'शक्ति निरूपण' में की जा चुकी है, के द्वारा शब्द की, दूसरे अर्थ को कहने की शक्ति (प्रभिधाशक्ति) के नियंत्रित हो जाने पर भी अनेकार्थक शब्दों के द्वारा कहीं कहीं जो अन्य अर्थ की प्रतीति होती है। उसे (अभिधामूला) व्यंजना कहा जाता है । वह अभिधा नहीं हो सकती क्योंकि 'संयोग' आदि के द्वारा उसका नियमन हो चुका है तथा लक्षणा इसलिये नहीं हो सकती कि 'मुख्य अर्थ की बाधा' इत्यादि लक्षणा की शर्तें यहां पूरी नहीं होतीं । [ 'व्यंजना वृत्ति अनावश्यक है' नैयायिकों के इस मन्तव्य का खण्डन ] ८३ यत्तु ताकिका :- लक्षरणयैव गतार्था व्यंजना इति न सा स्वीकार्या इत्याहुः । तन्न । लक्षणया मुख्यार्थ - बाधपूर्वक-लक्ष्यार्थं - बोधकत्वात् । मुख्यार्थ - सम्बद्धार्थस्यैव लक्षगया बोधकत्वात् । व्यंजनाया प्रतथात्वेन तदनन्तर्भावाच्च इति दिक् । For Private and Personal Use Only इति व्यंजना- निरूपणम् कि जो यह कहते हैं कि 'लक्षणा' से ही (लक्षणामूला) 'व्यंजना' का काम चल जाएगा इसलिये 'व्यंजना' (वृत्ति) को नहीं मानना चाहिये उनका वह कथन ठीक नहीं है । क्योंकि 'लक्षणा', वाच्य अर्थ के बोध होने पर, लक्ष्य अर्थ का बोध कराती है । तथा 'लक्षणा' वाच्यार्थ से सम्बद्ध अर्थ का ही ज्ञान कराती है । 'व्यंजना' इस प्रकार की नहीं है, इसलिए उस ( लक्षरगा) में ( व्यंजना का ) अन्तर्भाव नहीं हो सकता । नैयायिक विद्वान् 'व्यंजना' का अन्तर्भाव 'अभिधा', 'लक्षणा' तथा 'अनुमान' में करके 'व्यंजना' को अलग 'वृत्ति' नहीं मानना चाहते। उनका कहना है कि नानार्थक स्थलों में जो 'शब्दशक्ति-मूला व्यंजना' होती है, वहाँ 'अभिधा' से काम चल जायगा । जैसे - 'दूरस्था भूवरा रम्या' इत्यादि में 'भूधर' शब्द 'अभिधा' वृत्ति से 'पर्वत' अर्थ के समान 'राजा' अर्थ का भी बोध करा दिया करेगा । इसी प्रकार 'गंगायां घोष' इत्यादि 'लक्षणामूला व्यंजना' के प्रयोगों में 'लक्षणा' से ही 'शैत्यत्व', 'पावनत्व' आदि अर्थों
SR No.020919
Book TitleVyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagesh Bhatt, Kapildev Shastri
PublisherKurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
Publication Year1975
Total Pages518
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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