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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वैयाकरण- सिद्धान्त-परम-लघु-मंजूषा एते संयोगादयो नानार्थेषु शब्देषु शब्दार्थस्य प्रनवच्छेदे सन्देहे तदपाकरण - द्वारा विशेषार्थ निर्णायका इति तदर्थः । इस प्रकार की यह 'शक्ति' अनेक अर्थ वाले शब्दों में 'संयोग' आदि के आधार पर नियन्त्रित होती है । ( इस प्रसङ्ग में) भर्तृहरि ने यह कहा है ---- "संयोग, विप्रयोग, साहचर्य, विरोध, अर्थ, प्रकरण, लिङ्ग (विशेष चिन्ह ) अन्य शब्द की समीपता, सामर्थ्य, औचित्य, देश, काल, व्यक्ति (स्त्रीलिङ्ग, पुल्लिङ्ग तथा नपुंसकलिङ्ग), स्वर ( उदात्त आदि) आदि शब्दार्थ-विषयक सन्देह में विशेष अर्थ के निर्णायक होते हैं" । ये 'संयोग' आदि अनेक अर्थ वाले शब्दों में, शब्दार्थ के अनिश्चय की स्थिति में, सन्देह होने पर, उस ( सन्देह) का निराकरण करके विशेष अर्थ के निर्णायक होते हैं यह इन ( कारिकाओं) का अर्थ है । अनेक अर्थ वाले शब्द का प्रयोग होने पर किसी विशेष अर्थ में उसकी वाचकता शक्ति का निर्णय किस प्रकार होगा इसके लिये विभिन्न प्राधार बताते हुए नागेश ने इस प्रसङ्ग में भर्तृहरि के वाक्यपदीय (द्वितीय काण्ड) से उपर्युक्त दो कारिकायें उद्धत की हैं । परन्तु द्वितीय काण्ड के इस प्रकरण में इन कारिकाओं से पहले एक और कारिका निम्न रूप में मिलती है वाक्यात् प्रकरणात् श्रर्थाद् भौचित्याद् देशकालतः । शब्दार्थाः प्रविभज्यन्ते न रूपादेव केवलात् ॥ ( २.३१४ ) अर्थात् वाक्य, प्रकरण, अर्थ, प्रौचित्य देश तथा काल के आधार पर शब्दार्थ का निर्णय हुआ करता है, केवल रूप के आधार पर नहीं । इस कारिका की टीका के उपरान्त संसर्गों विप्रयोगश्च ० तथा सामर्थ्यमौचिती० इन दो कारिकाओं की अवतारणा करते हुए टीकाकार पुण्यराज ने यह कहा है कि शब्दार्थ के निर्णय के हेतु के रूप में अन्य विद्वानों ने संसर्ग आदि हेतुनों का प्रदर्शन किया है जिनका वर्णन भर्तृहरि यहाँ करने जा रहे हैं । द्र० - " तथा चापरैः संसर्गादयः शब्दार्थावच्छेदहेतवः प्रदर्शिता इत्याह" (रघुनाथ शर्मा सम्पादित, पुण्यराज की टीका पृ० ४२० ) प्रथम कारिका 'वाक्यात् प्रकरणात्' को देखते हुए पुण्यराज की बात कुछ ठीक भी प्रतीत होती है । क्योंकि उसमें परिगणित प्रकरण, अर्थ, औचित्य, देश तथा काल का अन्य दो कारिकाओं - स सर्गो विप्रयोगश्च० तथा सामर्थ्य मोचिती० में पुनः कथन हुआ है। अभिप्राय यह है कि ये दोनों कारिकायें भर्तृहरि ने अन्य प्राचार्यों के मत के रूप में प्रस्तुत की हैं, यह उनका अपना अभिमत नहीं है । जो भी हो - इन कारिकाओं में प्रदर्शित हेतुओं के आधार पर शब्दार्थ का निर्णय तो होता ही है । 1 For Private and Personal Use Only
SR No.020919
Book TitleVyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagesh Bhatt, Kapildev Shastri
PublisherKurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
Publication Year1975
Total Pages518
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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